Hindi, asked by Alvinvarghese7590, 9 months ago

भारतीय साहित्य परंपरा में गद्य, काव्य अथवा नाटकों में 'किसी साहूकार या
बिचौलिए के हाथों निर्धन की दुर्दशा' एक प्रचलित अवधारणा है। अपनी मातृभाषा
में इसके उदाहरण ढूँढें और उसे समझाएँ।

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Answered by dcharan1150
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भारतीय साहित्य परंपरा में गद्य, काव्य अथवा नाटकों में 'किसी साहूकार या

बिचौलिए के हाथों निर्धन की दुर्दशा' एक प्रचलित अवधारणा है। अपनी मातृभाषा

में इसके उदाहरण ढूँढें और उसे समझाएँ।

Explanation:

उत्तर :- भारतीय साहित्य में आपको ऐसे कई सारे उदाहरण मिल जाएंगे जहां पर छोटे-छोटे शिल्पकार और किसान साहूकारों और बिचौलियों के द्वारा शोषित हो रहें हो। वैसे यहां पर मुझे इस संदर्भ में एक प्रसिद्ध उपन्यास का नाम याद आ रहा हैं। यह उपन्यास हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक मुंशी प्रेम चंद जी ने लिखा था।

“गोदान” को अगर किसी ने अच्छे से पढ़ा होगा तो, उसे पता ही होगा की इसमें “होरी” नाम के किसान की साहूकारों और महाजनों की कुर्कीओं के भय से कैसी दुर्दशा होती हैं। यहां पर वह चाह कर भी इन लोगों की वजह से अपने परिवार को बचा नहीं पाता हैं। आज भी कई जगहों पर किसानों की हालत इन्हीं लोगों के वजह से इतनी दुख दाई हैं।

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