Hindi, asked by RaghavendraAM6125, 1 year ago

भावना से कर्तव्य ऊंचा है अनुच्छेद लेखन। Bhavna se Kartavya uncha hai

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Answered by Stylishhh
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भावना का संबंध मनुष्य के मन से और कर्तव्य का जीवन व्यवहारों से होता है। भावना सपनों को जन्म दिया करती है। जबकि कर्तव्य उन्हें पूरा करने, तथा उन्हें साकार स्वरूप देने का एक मात्र साधन है। कहा जाता है कि भावना की रोटियों से पेट नहीं भरा करता। वह तो संसार के कर्तव्य कर्म करने से ही भर सकता है। इस दृष्टि से भावना से बढ़कर कर्तव्य का स्थान और महत्व स्वयं ही स्पष्ट हो जाता है। परंतु इसका अर्थ यह भी नहीं कि मनुष्य को भावना का पूर्णतया त्याग या बहिष्कार कर देना चाहिए। नहीं, ऐसा करके जीवन रूपी संसार में सहज रुप से रह पाना कतई संभव नहीं हो सकता। वह भावना ही है, जिसने एक मनुष्य को दूसरे के साथ जोड़ रखा है। सारे रिश्ते-नाते और संबंध वास्तव में भावना की ही देन है। यह भावना ही है जो बेजान धरती के साथ मातृत्व का संबंध स्थापित करके मनुष्य को तन-मन-धन और सर्वस्व का बलिदान कर देने की प्रेरणा दिया करती है। घर-परिवार ही नहीं समाज, देश और राष्ट्र तक की बुनियाद भावना ही है। यह भावना ही है, जो आत्मा-परमात्मा की सत्ता से साक्षात्कार करवाया करती है। इन समस्त सच्चाईयों के होते हुए भी केवल भावना ही जीवन नहीं है। भावनाओं की रक्षा एवं उन्नयन के लिए, उनकी पूर्ति के लिए ही भगवान श्री राम ने अपने पिता का आदेश पाकर वन जाना अपना परम कर्तव्य माना था। भरत का राज्य-त्याग, राम का सीता-त्याग भावनाओं का कर्तव्य के साथ पुण्य समन्वय का ही परिणाम था। अतः कहां जा सकता है की केवल भावना या केवल कर्तव्य पालन ही सच्चा सुखद जीवन नहीं है, बल्कि इन दोनों के उचित समन्वय से ही सच्चे अर्थों में जीवन सुखी, रोचक और जीने योग्य बना करता है।

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