Ek suhani sham par anuched
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पिछले वर्ष 25 दिसम्बर का दिन था । प्रातःकाल सात बजे सोकर उठने पर मैंने देखा कि ऊपर से रजाई एकदम ठंडी और नम-सी है ।
मैंने खिड़की के बाहर देखा, तो पाया कि दूर-दूर तक कुछ नहीं दिखाई देता । चारों ओर घना कुहरा छाया हुआ था । रजाई से बाहर निकलने को मन नहीं कर रहा था । मां के आग्रह पर बड़े अनमने मन से मैं हिम्मत करके रजाई से बाहर आया ।
बिस्तर से उठते ही मैंने गरम कपड़े पहन लिए । ऊनी शाल ओढकर मैंने कुल्ला-दातुन किया और नित्यकर्म से निपटा । चाय पीकर मैंने पैंट, कोट, जरसी, मोजे और जूते पहन लिए और कानों में मफलर लपेटकर मैं घर के बाहर सैर करने को निकल पड़ा । उस दिन स्कूल तो बन्द था ही । बड़े दिन की छुट्टी थी ।
बाहर आकर मैंने देखा कि बड़ी ठंडी और बर्फीली हवा चल रही थी । कुहरा अभी तक छाया हुआ था । 3-4 मीटर के आगे कुछ नहीं दिखाई दे रहा था । आने-जाने वाली कारें और स्कूटर अपनी बत्तियाँ जलाये, धीरे-धीरे जा रहे थे क्योंकि उन्हें भी अधिक दूर तक कुछ दिखाई नहीं दे रहा था ।
मैदान की घास पर पाले की हल्की सफेद पर्त जमी थी । ऐसे में सैर करने के लिए निकलना बड़ी हिम्मत का काम था । सड़क पर कुछ ही दूरी पर मैंने एक कुत्ता मरा हुआ देखा । सभवत: रात की ठंड से वह मर गया था ।
शाम को मैं पुन: घर से बाहर निकला । मेरे कुछ दोस्त हिमपात देखने शिमला का कार्यक्रम बना रहे थे । उन्होंने मुझसे भी चलने को कहा । मैं हिमपात देखने को उत्सुक तो था, लेकिन उसी समय मुझे उस गरीब भिखारी की याद आ गई जिसे मैंने सुबह ही मरने से बचाया था ।
मुझे अब कुछ अच्छा नहीं लग रहा था । मैंने शिमला जाने से इकार कर दिया । मेरे दिमाग पर अभी भी झोपड़ी का दृश्य छाया हुआ था । मुझे लगा कि सर्दियों अमीरों को खुशहाल बनाती हैं और गरीबों के प्राण तक हर लेती हैं । सर्दी का मेरा सारा आनन्द इन विचारों से लुपा हो गया ।
मैंने खिड़की के बाहर देखा, तो पाया कि दूर-दूर तक कुछ नहीं दिखाई देता । चारों ओर घना कुहरा छाया हुआ था । रजाई से बाहर निकलने को मन नहीं कर रहा था । मां के आग्रह पर बड़े अनमने मन से मैं हिम्मत करके रजाई से बाहर आया ।
बिस्तर से उठते ही मैंने गरम कपड़े पहन लिए । ऊनी शाल ओढकर मैंने कुल्ला-दातुन किया और नित्यकर्म से निपटा । चाय पीकर मैंने पैंट, कोट, जरसी, मोजे और जूते पहन लिए और कानों में मफलर लपेटकर मैं घर के बाहर सैर करने को निकल पड़ा । उस दिन स्कूल तो बन्द था ही । बड़े दिन की छुट्टी थी ।
बाहर आकर मैंने देखा कि बड़ी ठंडी और बर्फीली हवा चल रही थी । कुहरा अभी तक छाया हुआ था । 3-4 मीटर के आगे कुछ नहीं दिखाई दे रहा था । आने-जाने वाली कारें और स्कूटर अपनी बत्तियाँ जलाये, धीरे-धीरे जा रहे थे क्योंकि उन्हें भी अधिक दूर तक कुछ दिखाई नहीं दे रहा था ।
मैदान की घास पर पाले की हल्की सफेद पर्त जमी थी । ऐसे में सैर करने के लिए निकलना बड़ी हिम्मत का काम था । सड़क पर कुछ ही दूरी पर मैंने एक कुत्ता मरा हुआ देखा । सभवत: रात की ठंड से वह मर गया था ।
शाम को मैं पुन: घर से बाहर निकला । मेरे कुछ दोस्त हिमपात देखने शिमला का कार्यक्रम बना रहे थे । उन्होंने मुझसे भी चलने को कहा । मैं हिमपात देखने को उत्सुक तो था, लेकिन उसी समय मुझे उस गरीब भिखारी की याद आ गई जिसे मैंने सुबह ही मरने से बचाया था ।
मुझे अब कुछ अच्छा नहीं लग रहा था । मैंने शिमला जाने से इकार कर दिया । मेरे दिमाग पर अभी भी झोपड़ी का दृश्य छाया हुआ था । मुझे लगा कि सर्दियों अमीरों को खुशहाल बनाती हैं और गरीबों के प्राण तक हर लेती हैं । सर्दी का मेरा सारा आनन्द इन विचारों से लुपा हो गया ।
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Explanation:
दिन में कई तरह का शोर-शराबा हमें सुनाई देता है वहीं शाम को सब कुछ शांत सा हो जाता है यह सब महसूस करके काफी अच्छा लगता है। ... शाम के समय पूरा परिवार एकत्रित हो जाता है और अपने दिन के कार्यों से मुक्ति पाता है ऐसा लगता है कि श्याम को कुछ समय तक आजादी मिल गई
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