Hindi, asked by arcddvsdemon5, 1 year ago

Essay on Contribution of Sh. Bankim Chandra Chattopadhyay (Chatterjee) in the cultural revival of Bengal in Hindi

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बंगाल के सांस्कृतिक पुनरुत्थान में श्री बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय (चटर्जी) का योगदान

बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय, भारत के पहले लेखक थे जिन्होंने उपन्यास लिखने की पश्चिमी शैली को बंगला भाषा में अपनाया। उन्होंने बंगाली में चौदह उपन्यास लिखे। बंगाल के लोगों ने अंग्रेजी में उपन्यास पढ़े थे पर चट्टोपाध्याय जी के उपन्यासों ने उनको अपनी भाषा में उसी शैली का आनंद लेने का अवसर प्रदान करा। वे बंगाल के लोगों को साक्षरता अभियान द्वारा सुशिक्षित करना चाहते थे। शिक्षा द्वारा बंगाल का सांस्कृतिक पुनरुत्थान करना उनका लक्ष्य था।

 

उनके प्राथमिक उपन्यास मूल रूप से प्रेम पर आधारित थे। बंगाल के लोगों में चेतना जागृत करने के उद्देश्य से उन्होंने 1872 में एक मासिक पत्रिका, 'बंगदर्शन' आरंभ करी। उसमें क्रमिक उपन्यास, कहानियाँ, हास्यपूर्ण रेखाचित्र, इतिहासिक व संकलित निबंध, जानकारी के लेख, धार्मिक प्रवचन, साहित्यिक आलोचना व समीक्षा सम्मिलित थे। उनका प्रसिद्ध उपन्यास 'विषबृक्ष" इस पत्रिका में क्रमिक रूप से पेश करा गया।


चट्टोपाध्याय जी भारत व बंगाल के सामाजिक व धार्मिक सुधारक थे। उन्होंने उस समय की सामाजिक स्थितियों को ध्यान में रखते हुए अनेक रचनायें करीं। उनका मत था कि समाज में प्रचलित अंधविश्वास पर आधारित प्रथायें अनुचित थीं। साथ ही पश्चिमी संस्कृति का बिना सोचे समझे अनुकरण करना भी ठीक नहीं था। उनका कहना था कि समाज व धर्म में सुधार, नवीनीकरण व शुद्धीकरण आवश्यक था। ऐसा करने से ही भारत का विकास संभव था।

 

अपनी रचनाओं के द्वारा उन्होंने अपने पाठकों के आत्म विश्वास को बढ़ाया। उनमें अपने धर्म के प्रति स्वाभिमान उत्पन्न करा। अपने उपन्यासों में इतिहासिक वीरों की जीवनी पेश करके लोगों में देश प्रेम जागृत करा। अपनी धार्मिक रचनाओं के द्वारा बंगाल के सांस्कृतिक पुनरुत्थान की प्रभावशाली बुनियाद की रचना करी।

                           

बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय एक उच्च स्तर के कहानीकार थे। उन्होंने बंगाल के पथ प्रदर्शक के रूप में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उन्हें बंगाल में सांस्कृतिक पुनरुत्थान का प्रकाश स्तंभ मानना उचित है।   

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बंगला साहित्यकार बंकिमचंद्र चटर्जी का 'वंदे मातरम' गीत राष्ट्रवाद को भलि-भांति व्यक्त करता है। यह गीत आज भी राष्ट्र की संप्रभुता और एकता का शंखनाद करता है। बंकिम का जन्म उस काल में हुआ जब बंगला साहित्य का न कोई आदर्श था और न ही कोई प्रारूप। बंगला साहित्य पर तब कोई विचार भी मानव मन में नहीं पनपे थे। लिहाजा बंकिम ने साहित्य के क्षेत्र में कुछ कविताएँ लिखकर अपनी उपस्थिति दर्ज की। उनका जन्म 26 जून, 1838 को हुआ और मृत्यु 8 अप्रैल, 1894 को हुई। बंकिम ने 1874 में वन्देमातरम् की रचना की जिसे बाद में आनन्द मठ नामक उपन्यास में शामिल किया गया। वन्देमातरम् गीत को सबसे पहले 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था।

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