Hindi, asked by abhisheksharma11, 1 year ago

essay on "kaise ho shikcha"

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Answered by kshitija2909
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शिक्षा का लक्ष्य विद्यार्थियों के अंदर अच्छे संस्कार पैदा करना तथा उन्हें आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाना है। स्कूल में दाखिला लेने के बाद एक विद्यार्थी अपने स्कूल की पुस्तकों से, शिक्षकों से, स्कूल के वातावरण तथा सहपाठियों से बहुत कुछ सीखता है। 
शिक्षा का उद्देश्य दूसरों पर विचार थोपना या मतारोपण करना नहीं है और न ही शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य को किसी प्रकार का आदेश देना है। शिक्षा का लक्ष्य किसी प्रकार का कष्ट अथवा दण्ड भी नहीं होना चाहिए। जब शिक्षा दण्ड बन जाती है तो छात्रों में अनुशासनहीनता पैदा होती है, जिसके फलस्वरूप छात्र आन्दोलन तथा हडतालें आदि करते हैं। 
शिक्षा का उद्देश्य केवल किताबी कीड़े पैदा करना नहीं बल्कि देश के लिए भावी नागरिकों को श्रेष्ठ तथा स्वास्थ बनाना है। ऐसे ही नागरिक आगे चलकर हमारे राष्ट को उनन्त एवं समृद्ध बना सकते हैं। 
वास्तविक शिक्षा वही है जो व्यक्ति को सभी प्रकार के अंधकारों और बंधनों से मुक्त करती है। इस प्रकार का लक्ष्य मनुष्य को अज्ञान-अंधकार तथा बंधनों से मुक्त कराना है।
वास्तविक शिक्षा वही है जो व्यक्ति को भी सभी प्रकार के अंधकारों और बंधनों सें मुक्त करती है। इस प्रकार शिक्षा का लक्ष्य मनुष्य को अज्ञान-अंधकार तथा बंधनों से मुक्त कराना है। 
मनुष्य के मन में छाए हुए कई प्रकार के दुराग्रह और हठ शिक्षा के प्रभाव से मिट जाते हैं। दुर्बलता और बीमारियाँ–चाहे वे व्यक्ति के मन से सम्बन्धित हों या शरीर से संबंधित हों-शिक्षा के प्रभाव से मिट जाया करती हैं।  
गाधी जी चाहते थे कि शिक्षित होकर विद्यार्थी देश की बागडोर सँभालने के लिए योग्य बन जाएं। एक दृष्टि से शिक्षा का उद्देश्य भावी युवा पीढ़ी में राष्ट्रप्रेम के संस्कार डालना तथा उन्हें राष्ट्र के प्रति, समाज के प्रति उनके कर्तव्यों को निभाने की जिम्मेवारी के योग्य बनाना है। 
इस सम्बंध में सन् 1927 ई, में ‘यंग इण्डिया’ पत्र में बापू ने लिखा-
‘‘...विद्यार्थियों को राष्ट्र का निर्माता बनाना है।...उन्हें अपने और समाज के दकियानूसी विचारों के सुधारों की अगुवाई करनी चाहिए। विद्यार्थियों को उन सबकी सुरक्षा करना चाहिए जो हमारे राष्ट्र के लिए अच्छा है। ऐसी बातोंचीजों की उन्हें सुरक्षा करनी चाहिए। विद्यार्थियों को चाहिए कि वे निर्भीकता के साथ इन अनगिनत बुराइयों से समाज को मुक्त दिलाएँ, जो समाज के ऊपर छाई हुई हैं।......विद्यार्थियों को लाखों लोंगो के लिए सक्रिय होना चाहिए। उन्हें प्रांत, नगर, वर्ग और जाति के रूप में सोचने के स्थान पर विश्व के रूप में सोचना सीखना चाहिए।’’                                         शिक्षा की आवश्यकताजब हमारा भारत देश आजाद हुआ तो डा. जाकिर हुसैन ने शिक्षा की आवश्यकता पर बहुत जोर दिया। मौलाना अब्दुल कलाम आजाद को भारत देश का प्रथम शिक्षामंत्री बनाया गया। उन्होंने देश की शिक्षा में पचार-प्रसार की कई नीतियाँ निर्धारित कीं। उन नीतियों का उद्देश्य भारत को प्रगति के पथ पर तेजी से आगे बढ़ाना था। जब देश उन्नति के रास्ते पर आगे बढ़ेगा, तभी शिक्षा का तेजी से विकास हो सकेगा।
संसार में छाए निरक्षरता और अज्ञान के अंधकार को मिटाने के लिए शिक्षा के प्रकाश की बहुत-बहुत आवश्कता है। शिक्षा से मनुष्य को जो ज्ञान, विवेक और समझदारी मिलती है, उसकी पग-पग पर मनुष्य को जरूरत पड़ती है। दैनिक जीवन के कार्यों में शिक्षा के कार्यों में शिक्षा हमारा मार्ग प्रशस्त करती है शिक्षा की आवश्यकता आज समाज के प्रत्येक वर्ग के व्यक्ति को है। सम्पन्न प्रकार की जातियाँ शिक्षा का उपयोग अपनी उन्नति और खुशहाली के लिए करती आई हैं। जबकि विपन्न या निचले स्तर की जातियों को उच्च क्षेणी के समाज ने शिक्षा-दीक्षा के क्षेत्र में ज्यादा आगे बढ़ने ही नहीं दिया। निम्न जातियों को हमेशा दबाकर रखा गया उन पर भाँति-भाँति के अत्याचार किए गए।
जब व्यक्ति पढ़-लिखकर साक्षर हो जाता है तो वह अपने ऊपर और अपने जाति के लोगों के ऊपर होने वाले अत्याचार का सामना तत्परता से करता है।
शिक्षा का मतलब ढेर सारी पुस्तकों का भार विद्यार्थियों के मस्तिष्क पर लाद देना नहीं है। बल्कि शिक्षा का अर्थ हरेक विद्यार्थी को बेहतर या श्रेष्ठ जीवन जीने योग्य बनाना है। इसलिए शिक्षा के सैद्धांतिक तत्त्वों के साथ व्यवहारिक तत्त्वों का भी योग होना चाहिए ताकि प्रत्येक विद्यार्थी अपने जीवन की मुश्किलों का बेहतर ढंग से सामना कर सके।
सही शिक्षा के अभाव में आज का युवक अपने जीवन के सही लक्ष्य से भटक गया है। वह अनेक प्रकार की बुरी आदतों और कुसंग का शिकार हो गया है। 
समाज को बेहरत बनाने के लिए और राष्ट्र को उन्नति की ओर ले जाने के लिए आज शिक्षा की विशेष आवश्यकता है। वर्तमान समय में हमारे राष्ट्र और हमारे समाज की स्थिति-परिस्थितियाँ संतोषजनक नहीं हैं। हमारा राष्ट्र आर्थिक दुर्बलता के दौर से गुजर रहा है, जबकि हमारे समाज में नित नई विघटनकारी शक्तियाँ पैदा होकर समाज को खोखला बना रही हैं। अशिक्षा के कारण लोग अंधविश्वास और भ्रम का शिकार हो रहे हैं। असामाजिक तत्त्व भले लोगों को बहका-फुसलाकर उन्हें तोड़-फोड़ और हिंसा के लिए उत्तेजित करते हैं। सही शिक्षा-ज्ञान के अभाव में राजनैतिक लोग विद्यर्थियों का अथवा यात्रा शक्ति का अपने स्वार्थों के लिए उपयोग करते हैं।
समाज-सुधार के लिए अथवा बिगड़े हुए मनुष्यों के लिए आज शिक्षा की बहुत जरूरत है। शिक्षा मानव को ये संस्कार प्रदान करती है। वह मनुष्य को उसके लक्ष्य तक पहुँचाने में सहायक बनती है। शिक्षा मनुष्य की जीवन-साथी की तरह है जिसकी आवश्यकता मनुष्य को पग-पग पर पड़ती है। वह श्रेष्ठ गुरु की तरह मनुष्य के जीवन को आलोकित कर उसे मार्गदर्शन प्रदान करती है।
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