Essay on Ten best things that I know about Sh. Bankim Chandra Chattopadhyay in Hindi
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बंकिमचंद्र चटर्जी कविता का एक लेखक के रूप में उनकी साहित्यिक कैरियर शुरू किया और कल्पना करने के लिए बदल गया। अंग्रेजी में उनका पहला उपन्यास प्रिंट में प्रकट करने के लिए राजमोहन की पत्नी थी तथ्य यह है कि वह अंग्रेजी भाषा में एक चिकनी साहित्यिक जीवन नहीं हो सकता था वह बंगाली साहित्य की ओर की ओर ध्यान दिया साकार करने के लिए किसी भी प्रशंसा हासिल नहीं कर सका है। Durgeshnondini, अपनी पहली बंगाली रोमांस और बंगाली में पहले कभी उपन्यास, 1865 में उनकी पहली बड़ी प्रकाशन में प्रकाशित किया गया था 1866 में Kapalkundala था उसके लिए प्रशंसा और लोकप्रियता के बहुत से ले आया। उनके प्रसिद्ध उपन्यास के कुछ Kapalkundala, मृणालिनी, Vishbriksha, चंद्रशेखर, रजनी, Rajsimha, और देवी Chaudhurani हैं। बंकिमचंद्र चटर्जी सबसे प्रसिद्ध उपन्यास आनंद मठ 1882 में प्रकाशित किया गया था गीत "वन्दे मातरम्", जो बाद में राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया गया था निहित।
बंकिम चन्द्र जी की दस अच्छी बातें.....
'वन्दे मातरम्' ऐसे शब्द जिस से कोई भी प्रभावित न हो कहना असम्भव सिद्ध होगा। हमारे इस राष्ट्र गीत के रचयिता श्री बंकिम चंद्र चाटर्जी की ख्याति देश विदेश में प्रचलित है। इनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर अनगिनत लोगो ने इनका अनुकरण किया।
बंकीम चंद्र जी की खूबियाँ एक नहीं अनेक हैं।
बहुत ही कम आयु में ही इन्होने अपनी प्रतिभा व लगन से अपना विशिष्ट स्थान बनाया।
बचपन में एक दिन में ही अंग्रेज़ी वर्णमाला याद कर ली थी जिससे मैं आश्चर्य चकित हूँ।
बंकिमजी की भाषा लगन सराहनीय है। अपनी मातृ भाषा बंगाली मे अधिक
काम किये।
संस्कृत भाषा मे इनकी तीव्र आसक्ति मुझे अच्छी लगती है। वन्दे मातरम इनके संस्कृत ज्ञान को दर्शाता है।
बंकिमजी बहुत बुद्धिमान और सुशील छात्र थे। अन्य योग्य छात्रों को इनकी उपाधि दी
जाती थी।
वे धैर्य और सत्य की मूर्ति थे। सर्कारी नौकरी पर ही सरकार पर आरोप लगाया।
इन्होने अपनी रचनाओं में सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला। प्रेम.. त्याग.. वासना..पुनर्विवाह..विधवा उद्धरण.. एसी विषयों पर उपन्यास लिखें।
मुझे इनका हास्य रस बहुत पसंद है। परमहंस के पूछने पर कि ये कुछ झुके क्यों है तो इन्होंने कहा.. अंग्रेज के जूतों का कमाल है।बंकिम का अर्थ.. 'थोडा झुकना' भी है।
अपने अंतिम दिनों में ये धार्मिक ग्रंथों से जुड़े रहे।मृत्यु को दवा से न भगाकर भगवत गीता से उसका स्वागत किया।
साठ वर्ष के भीतर ही बकिम चंद्र जी ने इतनी ख्याति पाकर सबको आकर्षित
कर लिया।