Hindi, asked by shubhamkharet, 5 months ago

हमें चाहिए सुख न तनिक भी, दुख ही दुख ये प्राण सहें,
व्यथित हृदय में बस करूणा के, भाव स्रोत ही सदा बहें।
घृणा नहीं हो हमें किसी से, सभी जनों से प्यार रहे,
कोलाहल-विहीन नित, अपना सूना ही संसार रहे ।
यदि जग हमसे रहे रूष्ट भी तो भी हमें न रोष रहे,
हो न महत्त्व-मनोरथ मन में, लघुता में संतोष रहे ।
परम तृषाकुल इन नयनों में, पावन प्रेम-प्रवाह रहे,
केवल यही चाह है उर में, कभी ना कोई चाह रहे।
कोई भी विपत्ति आ जाए, हृदय कभी भयभीत न हो,
कोई भी जीवन का संकट, संकट हमें प्रतीत न हो।
चाहे इस संसार-समर में, कभी हमारी जीत न हो,
किन्तु हृदय से दूर हमारे, यह जीवन-संगीत न हो ।
निम्नलिखित में से निर्देशानुसार विकल्पों का चयन कीजिए -
1. काव्यांश में दुख की चाह क्यों की गई है
क) दुख के बाद सुख मिलेगा
ख) कोई उसे सुख नहीं देना चाहता
ग) दूसरों के दुख बॉटे जा सकेंगे। घ) उसके व्यथित हृदय में करूणा की धारा बहेगी
ium Co-Educational * Senior Secondary
2. 'कोलाहल-विहीन' का क्या तात्पर्य है?
क) शोर नहीं हो
ख) झगड़ा-झंझट न हो ग) शांति बनी रहे घ) सूनापन रहे
3. मन में महत्त्व पाने की इच्छा क्यों नहीं है-
क) उसके पास बहुत अधिक धन है
ख) वह बहुत अधिक विद्वान है
ग) उसे लघुता में ही संतोष है घ) वह किसी की बराबरी नहीं करना चाहता
4. काव्यांश में "संकट हमें प्रतीत न हो' क्यों कहा गया है-
क) हममें संकट सहने की क्षमता है ख) हमारे हृदय में कोई भय नहीं है
ग) हम बहूत संतोषी हैं
घ) हम संकटों से घिरे हैं
5. काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक होगा-
क) दुख की कामना ख) प्यार की कामना ग) संकट की कामना घ) जीवन-संगीत
अथवा​

Answers

Answered by rajvelbabitha123
5

Answer:

1 क

2 ख

3 ग

4 घ

5 घ

help for you

Answered by thapaaditya329
1

this all are wrong answer

Similar questions