ईशावास्यम्........कस्यस्विद्धनम्' इत्यस्य भावं सरलसंस्कृतभाषया विशदयत।
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ईशावास्यम्........कस्यस्विद्धनम्' इत्यस्य भावं सरलसंस्कृतभाषया विशदयत।
भावर्थ-> इस संसार में जो भी जड़ चेतन पदार्थ दिखाई दे रहे हैं उन सब में परमात्मा का स्वरूप व्याप्त है। वह परमात्मा ही इन सब पदार्थों का ईश अर्थात स्वामी है।
इसलिए उस परमेश्वर को सदा सब जगह व्यापक मानते हुए क्या भाव से ही सृष्टि के पदार्थों का उपभोग करना चाहिए। किसी भी धन पर कृष्णा युक्त दृष्टि नहीं रखनी चाहिए क्योंकि वास्तव में यह धन किसी का भी नहीं है। त्याग पूर्वक भोग शरीर के लिए भोजन अर्थात शक्ति बन जाता है और आसक्ति लालच से किया गया भोग विषय-भोग बन जाता है। ऐसा आ आसक्तिमय भोग ही रोग का कारण होता है।
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