India Languages, asked by angyanu5241, 10 months ago

'विद्यां चाविद्यां च.........ऽमृतमश्नुते' इति मन्त्रस्य तात्पर्य स्पष्टयत।

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Answered by coolthakursaini36
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विद्यां चाविद्यां च.........ऽमृतमश्नुते' इति मन्त्रस्य तात्पर्य स्पष्टयत।

भावर्थ-> विद्या शब्द का प्रयोग यहां आत्मज्ञान के अर्थ में हुआ है। इस जड़ चेतन जगत में सर्वत्र व्याप्त परमात्मा तथा शरीर में व्याप्त जीव आत्मा के ज्ञान को अध्यात्म ज्ञान कहा जाता है।

यह मोक्षदायी यथार्थ ज्ञान ही विद्या है। इससे भिन्न सभी प्रकार के ज्ञान को अविद्या नाम दिया गया है। अर्थशास्त्र, प्रौद्योगिकी, सूचनातंत्र आदि सभी प्रकार का ज्ञान अविद्या शब्द में समाहित हो जाता है। यह अध्यात्म ज्ञान मनुष्य की मृत्यु, दु:ख से छुडवाता है और इसी अध्यात्म ज्ञान द्वारा मनुष्य फिर अमरत्व अर्थात मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।

जन्म मरण के चक्कर से छूट जाता है इस प्रकार यह दोनों प्रकार का ज्ञान ही मनुष्य के लिए आवश्यक है तभी वह इस लोक तथा परलोक दोनों को सिद्ध कर सकता है।

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