Social Sciences, asked by Sudhanshusharma00113, 3 months ago

जाति - व्यवस्था से आप क्या समझते हैं​

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Answered by Huzef048
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Answer:

जाति व्यवस्था का अर्थ, परिभाषा और विशेषताएं ... जाति जन्म पर आधारित ऐसा सामाजिक समूह है जो अंतर्विवाह के नियम एवं सामाजिक सहवास के कुछ निषेधों का पालन करते हुए वंशानुगत आधार पर समाज मे व्यक्ति की प्रस्थिति का निर्धारण करती है।

जाति व्यवस्था हिंदुओं के सामाजिक जीवन की विशिष्ट व्यवस्था है, जो उनके आचरण, नैतिकता और विचारों को सर्वाधिक प्रभावित करती है। यह व्यवस्था कितनी पुरानी है, इसका उत्तर देना कठिन है। सनातनी हिन्दू इसे दैवी या ईश्वर प्रेरित व्यवस्था मानते हैं और ऋग्वेद से इसका सम्बंध जोड़ते हैं। लेकिन आधुनिक विद्वान् इसे मानवकृत व्यवस्था मानते हैं जो किसी एक व्यक्ति द्वारा कदापि नहीं बनायी गई वरन् विभिन्न काल की परिस्थितियों के अनुसार विकसित हुई। यद्यपि प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में मनुष्यों को चार वर्णों में विभाजित किया गया है- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र तथा प्रत्येक वर्ण का अपना विशिष्ट धर्म निरूपित किया गया है तथा अंतर्जातीय भोज अथवा अंतर्जातीय विवाह का निषेध किया गया है, तथापि वास्तविकता यह है कि हिन्दू हज़ारों जातियों और उपजातियों में विभाजित है और अंतर्जातीय भोज तथा अंतर्जातीय विवाह के प्रतिबन्ध विभिन्न समय में तथा भारत के विभिन्न भागों में भिन्न भिन्न रहे हैं। आजकल अंतर्जातीय भोज सम्बंधी प्रतिबंध विशेषकर शहरों में प्राय: समाप्त हो गये हैं और अंतर्जातीय विवाह संबंधी प्रतिबंध भी शिथिल पड़ गये हैं। फिर भी जाति व्यवस्था पढ़े-लिखे भारतीयों में प्रचलित है और अब भी इस व्यवस्था के कारण हिंदुओं को अन्य धर्मावलम्बियों से सहज ही अलग किया जा सकता है।

Answered by ranjitsinha08
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Answer:

जाति जन्म पर आधारित ऐसा सामाजिक समूह है जो अंतर्विवाह के नियम एवं सामाजिक सहवास के कुछ निषेधों का पालन करते हुए वंशानुगत आधार पर समाज मे व्यक्ति की प्रस्थिति का निर्धारण करती है।

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