Kya bhagwan hai under 1000 words
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Bhagwan hai ya nhi ye to nhi bataya ja sakta, par jo tumhari ichha puri karta hai wahi tumhari najar me bhagwan hai-
papa & mom.. hi apne bachchon ke asli bhagwan hote hain...
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एक समय मैं नास्तिक थी। बहुत से नास्तिकों की तरह, वैसे लोगों का मुद्दा जो परमेश्वर में विश्वास करते थे, मुझे बहुत परेशान करता था। नास्तिकों का क्या,हम बहुत समय, ध्यान और ऊर्जा इस बात का खंडन करने में बिताते हैं कि ईश्वर का अस्तित्व नहीं है। हमारे ऐसा करने का क्या कारण है ? जब मैं एक नास्तिक थी, मैने अपने इरादों को जिम्मेदारी से उन गरीब, भ्रांतिमय लोगों की देखभाल में लगाया ताकि उनको यह एहसास कराने में मदद कर सकूँ कि उनकी आशा पूरी तरह व्यर्थ है। ईमानदारी से बताऊँ, मेरी एक दूसरी इच्छा भी थी । जो ईश्वर पर विश्वास करते थे, जब मैंने उन्हें ललकारा तब मैं दिल से यह देखने के लिए इच्छुक थी कि क्या वे मुझे ईश्वर में यकीन दिला सकेंगे। मेरी खोज का एक अंश यह भी थी कि मैं ईश्वर जैसे प्रश्न से मुक्त हो सकूँ। अगर मेरा निर्णय ईश्वर को माननेवालों को गलत सिद्ध कर देती तो सारा मामला ही सुलझ जाता और मैं अपने जीवन को कहीं भी ले जाने के लिए मुक्त हो जाती ।
-मैंने यह कारण महसूस नहीं किया कि ईश्वर का विषय मेरे दिमाग पर बहुत बोझ डाल रहा है क्योंकि ईश्वर खुद इस मुद्दे पर दबाव डाल रहा था। ईश्वर खुद चाहता था कि लोग उसे जाने। उसने हमे उसे जानने के इरादे के साथ पैदा किया। उसने हमारे चारों तरफ अपने होने के सबूत छोड़े और हमारे सामने अपने अस्तित्व के प्रश्न पैदा किए। शायद इसीलिए मैं ईश्वर के होने की संभावना जैसे प्रश्न को सोचने से बच नहीं पा रही थी। वास्तव में जिस दिन मैंने ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार किया, मेरी प्रार्थना इस शब्द से शुरू हुई, ‘’ठीक है, आप जीते ---‘’ इसका अन्तर्निहित कारण यह हो सकता है कि नास्तिक उन लोगों के बारे में चिन्ता करते हैं जो ईश्वर पर विश्वास रखते हैं क्योंकि ईश्वर खुद सकारात्मक रूप से उन्हें ऐसा करने के लिए बाध्य करते हैं।
केवल मैं ही ऐसा नहीं हूँ जिसने इसका अनुभव किया। मेलकोलम मग्रिज,एक समाजवादी और दार्शनिक लेखक ने लिखा है, ’’खोज के अलावा, मेरी ऐसी धारणा है कि मेरा पीछा किया जा रहा है।‘’ सी एस लेविस ने कहा, उन्हे याद है,‘’ एक के बाद एक कई रातों के बाद काम से एक क्षण के लिए भी जब मेरा ध्यान हटा तो ईश्वर का स्थिर और कठोर दृष्टिकोण, जिससे जोर देकर भी मैं मिलने की इच्छा नहीं रखता था मुझे महसूस हुआ। मैंने ईश्वर को स्वीकार किया और यह माना कि ईश्वर ईश्वर है, घुटनों पर बैठकर प्रार्थना की शायद उस रात वह पूरे इंगलैंड का सबसे उदास और अनिच्छुक धर्मांतरण था।'’
ईश्वर को जानने के बाद लेविस ने एक पुस्तक लिखी जिसका शीर्षक था ,‘’सरप्राइज्ड बाइ जॉय‘’ परमेश्वर के अस्तित्व को हक से स्वीकारने के अलावा मुझे और कोई उम्मीद न थी। फिर भी आनेवाले कई महीनों में, मैं अपने लिए ईश्वर का प्रेम देखकर चकित रह गया।
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-मैंने यह कारण महसूस नहीं किया कि ईश्वर का विषय मेरे दिमाग पर बहुत बोझ डाल रहा है क्योंकि ईश्वर खुद इस मुद्दे पर दबाव डाल रहा था। ईश्वर खुद चाहता था कि लोग उसे जाने। उसने हमे उसे जानने के इरादे के साथ पैदा किया। उसने हमारे चारों तरफ अपने होने के सबूत छोड़े और हमारे सामने अपने अस्तित्व के प्रश्न पैदा किए। शायद इसीलिए मैं ईश्वर के होने की संभावना जैसे प्रश्न को सोचने से बच नहीं पा रही थी। वास्तव में जिस दिन मैंने ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार किया, मेरी प्रार्थना इस शब्द से शुरू हुई, ‘’ठीक है, आप जीते ---‘’ इसका अन्तर्निहित कारण यह हो सकता है कि नास्तिक उन लोगों के बारे में चिन्ता करते हैं जो ईश्वर पर विश्वास रखते हैं क्योंकि ईश्वर खुद सकारात्मक रूप से उन्हें ऐसा करने के लिए बाध्य करते हैं।
केवल मैं ही ऐसा नहीं हूँ जिसने इसका अनुभव किया। मेलकोलम मग्रिज,एक समाजवादी और दार्शनिक लेखक ने लिखा है, ’’खोज के अलावा, मेरी ऐसी धारणा है कि मेरा पीछा किया जा रहा है।‘’ सी एस लेविस ने कहा, उन्हे याद है,‘’ एक के बाद एक कई रातों के बाद काम से एक क्षण के लिए भी जब मेरा ध्यान हटा तो ईश्वर का स्थिर और कठोर दृष्टिकोण, जिससे जोर देकर भी मैं मिलने की इच्छा नहीं रखता था मुझे महसूस हुआ। मैंने ईश्वर को स्वीकार किया और यह माना कि ईश्वर ईश्वर है, घुटनों पर बैठकर प्रार्थना की शायद उस रात वह पूरे इंगलैंड का सबसे उदास और अनिच्छुक धर्मांतरण था।'’
ईश्वर को जानने के बाद लेविस ने एक पुस्तक लिखी जिसका शीर्षक था ,‘’सरप्राइज्ड बाइ जॉय‘’ परमेश्वर के अस्तित्व को हक से स्वीकारने के अलावा मुझे और कोई उम्मीद न थी। फिर भी आनेवाले कई महीनों में, मैं अपने लिए ईश्वर का प्रेम देखकर चकित रह गया।
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