Hindi, asked by luckykoko0611, 1 year ago

Large summary of the novel "Nirmala" written by Munshi Premchand in Hindi. Please answer to this question in Hindi. Thank you...​

Answers

Answered by kinjalbagdi0704
1

कृष्णा-चन्दर इतना बदमाश है, उसे कोई नहीं भगाता। हम-तुम तो कोई बदमाशी नहीं करती।

एकाएक चन्दर धम-धम करता हुआ छत पर आ पहुँचा और निर्मला को देखकर बोला-अच्छा ! आप यहां बैठी हैं। ओहो ! अब तो बाजे बजेंगे, दीदी दूल्हन बनेंगी, पालकी पर चढ़ेंगी ओहो ! ओहो !

चन्दर का पूरा नाम चन्द्रभानु सिनहा था। निर्मला से तीन साल छोटा और कृष्णा से दो साल बड़ा।

निर्मला-चन्दर, मुझे चिढ़ाओगे तो अभी जाकर अम्मा से कह दूँगी।

चन्द्र-तो चिढ़ती क्यों हो ? तुम भी बाजे सुनना। ओ हो-हो। अब आप दूल्हन बनेंगी ! क्यों किशनी, तू बाजे सुनेगी न ? वैसे बाजे तूने कभी न सुने होंगे।

कृष्णा-क्या बैण्ड से भी अच्छे होंगे ?

चन्द्र-हाँ हाँ, बैण्ड से भी अच्छे, हजार गुने अच्छे, लाख गुने अच्छे,। तुम जानो क्या ? एक बैण्ड सुन लिया तो समझने लगीं कि उससे अच्छे बाजे नहीं होते। बाजे बजाने वाले लाल-लाल वर्दियाँ और काली काली टोपियाँ पहने होंगे। ऐसे खूबसूरत मालूम होंगे कि तुमसे क्या कहूँ ! आतिशबाजियाँ भी होंगी, हवाइयाँ आसमान में उड़ जायेंगी और वहां तारों में लगेंगी तो लाल, पीले, हरे, नीले, तारे टूट-टूटकर गिरेंगे। बड़ा मजा आयेगा।

कृष्णा-और क्या-क्या होगा चन्दर, बता दे मेरे भैया।

चन्द्र-मेरे साथ घूमने चल तो रास्ते में सारी बातें बता दूं। ऐसे-ऐसे तमाशे होंगे कि देखकर तेरी आँखें खुल जायेंगी। हवा में उड़ती हुई परियाँ होंगी, सचमुच की परियाँ।

कृष्णा-अच्छा चलो, लेकिन न बताओगे तो मारूँगी।

चन्द्रभानु और कृष्णा चले गये, निर्मला अकेली बैठी रह गई। कृष्णा के चले जाने से इस समय उसे बड़ा क्षोभ हुआ। कृष्णा, जिसे वह प्राणों से भी अधिक प्यार करती थी, आज इतनी निठुर हो गई। अकेली छोड़कर चली गई ! बात कोई न थी, लेकिन दुःखी ह्रदय दुखती हुई आंख है, जिसमें हवा से भी पीड़ा होती है। निर्मला बड़ी देर तक बैठी रोती रही। भाई -बहन माता-पिता, सभी इसी भाँति मुझे भूल जायेंगे, सब की आँखें फिर जायँगी, फिर शायद इन्हें देखने को भी तरस जाऊँ।

बाग में फूल खिले हुए थे। मीठी-मीठी सुगन्ध आ रही थी। चैत की शीतल मन्द समीर चल रही थी। आकाश में तारे छिटके हुए थे। निर्मला इन्हीं शोक मय विचारों में पड़ी-पड़ी सो गई और आँख लगते ही उसका मन स्वप्न-देश में विचरने लगा। क्या देखती है कि सामने एक नदी लहरें मार रही है और वह नदी के किनारे नाव की बाट देख रही है। सन्ध्या का समय है। अँधेरा किसी भयंकर जन्तु की भाँति बढ़ता चला आता है।

ह किसी अदृश्य सहारे के लिए हाथ फैलाती है, नाव नीचे से खिसक जाती है और उसके पैर उखड़ जाते हैं। वह जोर से चिल्लाई और चिल्लाते ही उसकी आँख खुल गई। देखा तो माता सामने खड़ी उसका कन्धा पकड़ हिला रही थीं।

(2)

बाबू उदयभानुलाल का मकान बाजार बना हुआ है। बरामदे में सुनार के हथौड़े और कमरे में दर्जी की सूईयाँ चल रही हैं। सामने नीम के नीचे बढ़ई चारपाइयाँ बना रहा है। खपरैल में हलवाई के लिए भट्टा खोदा गया है। मेहमानों के लिए अलग मकान ठीक किया गया है। यह प्रबन्ध किया जा रहा है कि हरेक मेहमान के लिए एक-एक चारपाई, एक-एक कुर्सी और एक-एक मेज हो। हर तीन मेहमानों के लिए एक-एक कहार रखने की तजवीज हो रही है। अभी बारात आने में एक महीने की देर हैं। लेकिन तैयारियाँ अभी से हो रही हैं। बारातियों का ऐसा सत्कार किया जाय कि किसी को जबान हिलाने का मौका न मिले। वे लोग भी याद करें कि किसी के यहाँ बारात में गये थे। एक पूरा मकान बर्तनों से भरा हुआ है। चाय के सेट हैं, नाश्ते की तश्तरियाँ, थाल, लोटे, गिलास। जो लोग नित्य खाट पर पड़े हुक्का पीते रहते थे, बड़ी तत्परता से काम में लगे हुए हैं। अपनी उपयोगिता सिद्ध करने का ऐसा अच्छा अवसर उन्हें फिर बहुत दिनों के बाद मिलेगा। जहाँ एक आदमी को जाना होता है, पाँच दौड़ते हैं। काम कम होता है, हुल्लड़ अधिक। जरा-जरा सी बात पर घण्टों तर्क-वितर्क होता है और अन्त में वकील साहब को आकर निर्णय करना पड़ता है। एक कहता है, यह घी खराब है, दूसरी कहता है, इससे अच्छा बाजार में मिल जाए तो टाँग की राह से निकल आऊं। तीसरा कहता है, इसमें तो हीक आती है। चौथा कहता है, तुम्हारी नाक ही सड़ गई है, तुम क्या जानों घी किसे कहते हैं। जब से यहाँ से आये हो, घी मिलने लगा है, नहीं तो घी के दर्शन भी न होते थे ! इस पर तकरार बढ़ जाती है और वकील साहब को झगड़ा चुकाना पड़ता है।

मतई-मैं सात साल को जाऊंगा या चौदह साल को, पर तुम्हें जीता न छोड़ूगा। हाँ, अगर तुम मेरे पैरों पर गिरकर कसम खाओ कि अब किसी को सजा न कराऊँगा, तो छोड़ दूँ। बोलो, मंजूर है ?

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