Hindi, asked by kittu4481, 1 year ago

mirabai ka jivan parichay in hindi

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Answered by BhawnaAggarwalBT
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मीराबाई का जन्म संवत् 1504 विक्रमी में मेड़ता में दूदा जी के चौथे पुत्र रतन सिंह के घर हुआ। (कई किताबो में कुड़की बताया जाता है बिल्कुल गलत है क्योंकि कुड़की जागीर रतन सिंह जी को मीरा बाई के 11वे जन्मदिन पर मिली थी ) विस्तार से जानकारी के लिए मीरा चरित। ये बचपन से ही कृष्णभक्ति में रुचि लेने लगी थीं।मीरा का जन्म राठौर राजपूत परिवार में हुए व् उनका विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में हुआ। उदयपुर के महाराणा कुंवर भोजराज इनके पति थे  जो मेवाड़ के महाराणा सांगा के पुत्र थे। विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति का देहान्त हो गया। पति की मृत्यु के बाद उन्हें पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया, किन्तु मीरा इसके लिए तैयार नहीं हुईं। वे संसार की ओर से विरक्त हो गयीं और साधु-संतों की संगति में हरिकीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगीं। पति के परलोकवास के बाद इनकी भक्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई। ये मंदिरों में जाकर वहाँ मौजूद कृष्णभक्तों के सामने कृष्णजी की मूर्ति के आगे नाचती रहती थीं। मीराबाई का कृष्णभक्ति में नाचना और गाना राज परिवार को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कई बार मीराबाई को विष देकर मारने की कोशिश की। घर वालों के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान होकर वहद्वारका और वृंदावन गईं। वह जहाँ जाती थीं, वहाँ लोगों का सम्मान मिलता था। लोग उनको देवियों के जैसा प्यार और सम्मान देते थे।मीरा का समय बहुत बड़ी राजनैतिक उथल पुथल का समय रहा है। बाबर का हिंदुस्तान पर हमला और प्रसिद्ध खानवा की लड़ाई जो की बाबर और राणा संग्राम सिंह के बीच हुई, जिसमें राणा सांगा की पराजय हुई और भारत में मुग़लों का अधिपत्य शुरू हुआ। हिंदुत्व के पतन और अवसान के दिन आरम्भ हुए। देश में राजनैतिक अस्थिरता पैदा हुई जिसमें धर्म और संस्कृति की रक्षा एक बहुत बड़ी चुनौती थी। इस सभी परिस्तिथियों के बीच मीरा का रहस्यवाद और भक्ति की निर्गुण मिश्रित सगुण पद्धत्ति सवर्मान्य  बनी।

द्वारका में संवत 1627 वो भगवान कृष्ण की मूर्ति में समा गईं।


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Answered by sainidisha400
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उनके पिता रतन सिंह राठौर छोटे राजपूत साम्राज्य कुडकी, जिला पाली, राजस्थान के शासक थे। उनकी माता का देहांत मीरा के बचपन में ही हो गया था और मीरा ही अपने माता-पिता की एकलौती संतान थी। संगीत, धार्मिक, राजनितिक और सरकार पर उन्होंने काफी अभ्यास कर रखा था।

उनके बड़े माता-पिता ने ही उनका पालन-पोषण किया था, जो भगवान विष्णु के भक्त थे। इच्छा न होते हुए भी 1516 में मीरा का विवाह भोज राज से हुआ था, जो मेवार के राजकुमार थे।मीराबाई ने अपना जीवन हिन्दू भगवान कृष्णा को समर्पित किया था। कृष्णा की भक्ति में लीन होकर वह भजन, और गीत गाती थी, कहा जाता है की उन्होंने ज्यादातर गीत भक्ति अभियान के समय में ही गाए थे।

मीराबाई भक्तिकाल की एक ऐसी संत थी जिनका सबकुछ कृष्णा के लिये समर्पित था, यहाँ तक की कृष्णा को ही वह अपना पति मान बैठी थी। भक्ति का ऐसा स्वरुप हमें बहुत कम देखने को मिलता है। मीराबाई के बालपन में कृष्णा की ऐसी छवि बैठी थी के किशोरावस्था से लेकर मृत्यु तक उन्होंने कृष्णा को ही अपना सबकुछ माना था।मीराबाई ने चार ग्रंथों की रचना की:

नरसी का मायरा

गीत गोविंद टीका

राग गोविंद

राग सोरठ के पद

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