mirabai ka jivan parichay in hindi
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द्वारका में संवत 1627 वो भगवान कृष्ण की मूर्ति में समा गईं।
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उनके पिता रतन सिंह राठौर छोटे राजपूत साम्राज्य कुडकी, जिला पाली, राजस्थान के शासक थे। उनकी माता का देहांत मीरा के बचपन में ही हो गया था और मीरा ही अपने माता-पिता की एकलौती संतान थी। संगीत, धार्मिक, राजनितिक और सरकार पर उन्होंने काफी अभ्यास कर रखा था।
उनके बड़े माता-पिता ने ही उनका पालन-पोषण किया था, जो भगवान विष्णु के भक्त थे। इच्छा न होते हुए भी 1516 में मीरा का विवाह भोज राज से हुआ था, जो मेवार के राजकुमार थे।मीराबाई ने अपना जीवन हिन्दू भगवान कृष्णा को समर्पित किया था। कृष्णा की भक्ति में लीन होकर वह भजन, और गीत गाती थी, कहा जाता है की उन्होंने ज्यादातर गीत भक्ति अभियान के समय में ही गाए थे।
मीराबाई भक्तिकाल की एक ऐसी संत थी जिनका सबकुछ कृष्णा के लिये समर्पित था, यहाँ तक की कृष्णा को ही वह अपना पति मान बैठी थी। भक्ति का ऐसा स्वरुप हमें बहुत कम देखने को मिलता है। मीराबाई के बालपन में कृष्णा की ऐसी छवि बैठी थी के किशोरावस्था से लेकर मृत्यु तक उन्होंने कृष्णा को ही अपना सबकुछ माना था।मीराबाई ने चार ग्रंथों की रचना की:
नरसी का मायरा
गीत गोविंद टीका
राग गोविंद
राग सोरठ के पद