Hindi, asked by ravenclaw3778, 9 months ago

निम्नलिखित गद्यांशों में नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए
उनके लिए न तो बड़े-बड़े वीर अद्भुत कार्य कर गए हैं और न बड़े-बड़े ग्रन्थकार ऐसे विचार छोड़ गए हैं, जिनसे मनुष्य जाति के ह्रदय में सात्विकता की उमंगे उठती हैं । उनके लिए फूल-पत्तियों में कोई सौन्दर्य नहीं, झरनों के कल-कल में मधुर संगीत नहीं, अनन्त सागर-तरंगों में गंभीर रहस्यों का आभास नहीं, उनके भाग्य में सच्चे प्रयत्न और पुरुषार्थ का आनन्द नहीं, उनके भाग्य में सच्ची प्रीति का सुख और कोमल ह्रदय की शान्ति नहीं । जिनकी आत्मा अपने इन्द्रिय-विषयों में ही लिप्त है; जिनका ह्रदय नीचाशयों और कुत्सित विचारों से कलुषित है, ऐसे नाशोन्मुख प्राणियों को दिन-दिन अन्धकार में पतित होते देख कौन ऐसा होगा जो तरस न खाएगा ।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए ।
(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए ।
(स) लेखक किस व्यक्ति पर तरस खाने की बात कह रहा है ?

Answers

Answered by shipra1686
0

Answer:

can you tell me from which lesson this para is related then I can help you

Answered by shishir303
5

(अ)

संदर्भ — उपर्युक्त गद्यांश हिंदी के प्रसिद्ध निबंधकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित निबंध ‘मित्रता’ से लिया गया है। इस निबंध मे आचार्य रामचंद्र शुक्ल नें मित्रता के महत्व का विवेचन किया है।

(ब)

प्रश्न में एक रेखांकित पंक्तियां स्पष्ट नहीं है। इसलिए पूरे गद्यांश का भावार्थ इस प्रकार है...

लेखक शुक्ल जी ने इस गद्यांश में कहते हैं कि ऐसे युवक जो पतन के मार्ग पर चले हैं, जो  बुरे व्यसनों के मायाजाल में पड़कर अपने जीवन को नष्ट कर रहे हैं, ऐसे युवकों के लिए उन व्यक्तियों का कोई महत्व नहीं जिन्होंने संसार में बड़े-बड़े कार्य किए। जिन्होंने अद्भुत और अनोखे कार्य करके इस संसार में एक मिसाल पेश की। इन युवकों के लिए उन विद्वान ग्रंथकारों का भी कोई महत्व नहीं जो ऐसे अनमोल विचार छोड़ गए जिससे मानव जाति का भला ही हुआ है। ऐसे लोगों के लिए प्रकृति के सौंदर्य में कोई दर्शन नहीं दिखता। वे प्रकृति के सौंदर्य के महत्व को नहीं समझ सकते। ना ही वह सच्चे मन से की गई कोशिश और पुरुषार्थ का आनंद महसूस कर सकते हैं। उनके भाग्य में सच्चे प्रेम का आनंद और कोमल हृदय में उत्पन्न होने वाली शांति का सुख नहीं है, क्योंकि ऐसे लोग केवल अपने इंद्रियों से संचालित विषय भोगों की आसक्ति में ही लीन रहते हैं। अर्थात ऐसे लोग केवल सुख-सुविधा के भोग में ही व्यस्त रहते हैं। उनके मन में हमेशा बुरे विचार ही उत्पन्न होते हैं, जो धीरे-धीरे उन्हें पतन के अंधकार में धकेलते जाते हैं। ऐसे लोगों को देखकर उनकी हालत पर तरस आता है।

(स)

लेखक यहां पर ऐसे लोगों के लोगों पर तरस खाने की बात कर रहा है, जो केवल भोग विलास में ही रहते हैं। जिनके ह्रदय में हमेशा बुरे और कुत्सित विचार ही उत्पन्न होते हैं। अपने गंदे विचारों के कारण निरंतर पतन के मार्ग पर चलने के कारण जिनका जीवन अंधकार में है, लेखक ऐसे लोगों पर तरस खाने की बात कर रहा है।

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