निम्नलिखित संस्कृत-पद्यांश/श्लोक का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए—
न वै ताडनात् तापनाद् वहिमध्ये,
न वै विक्रयात् क्लिश्यमानोSहमस्मि ।
सुवर्णस्य मे मुख्यदुःखं तदेकं
यतो मां जनाः गुञ्जया तोलयन्ति ।।
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प्रसंग: प्रस्तुत श्लोक में स्वर्ण के माध्यम से विद्वान और स्वाभिमानी पुरुष की व्यथा को अभिव्यक्ति दी गई है|
अनुवाद : मैं स्वर्ण ने पीटने से , न आग में तापने से और न बेचने के कारण दुखी है | मुझे तो बस एक ही मुख्य है की लोग मुझे रत्ती से तोलते है |
विद्वान और स्वाभिमानी पुरुष विपत्तियों से नहीं डरता है| उसका अपमान तो नीच के साथ उसकी तुलना करने में होता है | शारीरिक कष्ट उतना दुःख नहीं देते , जितनी पीड़ा मानसिक कष्ट पहुंचाते हैं|
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निम्नलिखित संस्कृत-पद्यांश/श्लोक का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए—
नीर-क्षीर-विवेके हंसालस्य त्वमेव तनुषे चेत् ।
विश्वस्मिन्नधुनान्यः कुलव्रतं पालयिष्यति कः ।।
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