Hindi, asked by Gauravdubey5163, 1 year ago

Nagarjun ka jivan parichya

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Answered by shraddhasingh77
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•नागअर्जुन•

नागार्जुन का साहित्य सृजनफक्कड़पन और घुमक्कड़ी प्रवृति नागार्जुन के जीवन की प्रमुख विशेषता रही है। व्यंग्य नागार्जुन के व्यक्तित्व में स्वाभवत: सम्मिलित था। चाहे सरकार हो, समाज हो या फिर मित्र - उनके व्यंग्यबाण सबको बेध डालते थे। कई बार संपूर्ण भारत का भ्रमण करने वाले इस कवि को अपनी स्पष्टवादिता और राजनीतिक कार्यकलापों के कारण कई बार जेल भी जाना पड़ा।

काँग्रेस द्वारा गांधीजी के नाम के दुरूपयोग पर नागार्जुन प्रश्न उठाते हैं -

"गांधी जी का नाम बेचकर, बतलाओ कब तक खाओगे?
यम को भी दुर्गंध लगेगी, नरक भला कैसे जाओगे?" ( नागार्जुन की कविता - झंडा)

देश की स्वतंत्रता के दशक बीत जाने पर भी जब देश की परिस्थितियां बेहतर नहीं होती तो देश की दशा पर नागार्जुन की कलम सिसक उठती है -

"अंदर संकट, बाहर संकट, संकट चारों ओर
जीभ कटी है, भारतमाता मची न पाती शोर
देखो धँसी-धँसी ये आँखें, पिचके-पिचके गाल
कौन कहेगा, आज़ादी के बीते तेरक साल?"
(नागार्जुन की कविता -बीते तेरह साल)


कवि न किसी से डरता है, न पथ से डिगता वह कहता है -

जनता मुझसे पूछ रही है, क्या बतलाऊँ?जनकवि हूँ मैं स़ाफ कहूंगा, क्यों हकलाऊँ?
नेहरू को तो मरे हुए सौ साल हो गये
अब जो हैं वो शासन के जंजाल हो गये
गृह-मंत्री के सीने पर बैठा अकाल है
भारत-भूमि में प्रजातंत्र का बुरा हाल है!
(नागार्जुन की कविता -भारत-भूमि में प्रजातंत्र का बुरा हाल है)


1935 में दीपक (मासिक) तथा 1942-43 में विश्वबंधु (साप्ताहिक) पत्रिका का संपादन किया। अपनी मातृभाषा मैथिली में वे यात्री नाम से रचना करते थे। मैथिली में नवीन भावबोध की रचनाओं का प्रारंभ उनके महत्त्वपूर्ण कविता-संग्रह, 'चित्र' से माना जाता है। नागार्जुन ने संस्कृत तथा बांग्ला में भी काव्य-रचना की है।

लोकजीवन, प्रकृति और समकालीन राजनीति उनकी रचनाओं के मुख्य विषय रहे हैं। विषय की विविधता और प्रस्तुति की सहजता नागार्जुन के रचना संसार को नया आयाम देती है। छायावादोत्तर काल के वे अकेले कवि हैं जिनकी रचनाएँ ग्रामीण चौपाल से लेकर विद्वानों की बैठक तक में समान रूप से आदर पाती हैं। जटिल से जटिल विषय पर लिखी गईं उनकी कविताएँ इतनी सहज, संप्रेषणीय और प्रभावशाली होती हैं कि पाठकों के मानस लोक में तत्काल बस जाती हैं। नागार्जुन की कविता में धारदार व्यंग्य मिलता है। जनहित के लिए प्रतिबद्धता उनकी कविता की मुख्य विशेषता है।

नागार्जुन ने छंदबद्ध और छंदमुक्त दोनों प्रकार की कविताएँ रचीं। उनकी काव्य-भाषा में एक ओर संस्कृत काव्य परंपरा की प्रतिध्वनि है तो दूसरी ओर बोलचाल की भाषा की रवानी और जीवंतता भी। पत्रहीन नग्न गाछ (मैथिली कविता संग्रह) पर उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। उन्हें उत्तर प्रदेश के भारत-भारती पुरस्कार, मध्य प्रदेश के मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार और बिहार सरकार के राजेंद्र प्रसाद पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें दिल्ली की ̄हदी अकादमी का शिखर सम्मान भी मिला।

उनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं -

युगधारा, प्यासी पथराई आँखें, सतरंगे पंखों वाली, तालाब की मछलियाँ, हजार-हजार बाहों वाली, पुरानी जूतियों का कोरस, तुमने कहा था, आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने, मैं मिलटरी का बूढ़ा घोड़ा, रत्नगर्भा, ऐसे भी हम क्या: ऐसे भी तुम क्या, पका है कटहल, भस्मांकुर ।

बलचनमा, रतिनाथ की चाची, कुंभी पाक, उग्रतारा, जमनिया का बाबा, वरुण के बेटे जैसे उपन्यास भी विशेष महत्त्व के हैं।

आपकी समस्त रचनाएँ नागार्जुन रचनावली (सात खंड) में संकलित हैं।

- रोहित कुमार 'हैप्पी'

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