"Question 2 भाव स्पष्ट कीजिए − रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में, सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में। अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं, दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।
Class 10 - Hindi - मनुष्यता Page 22"
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प्रसंग:प्रस्तुत पंक्तियां राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित कविता मनुष्यता से ली गई है। इन पंक्तियों में कवि ने मनुष्य को धन संपत्ति पर अधिक घमंड ना करके ईश्वर पर विश्वास करने की प्रेरणा दी।
व्याख्या;
कवि कहता है कि मनुष्य को धन-संपत्ति के घमंड में अंधा होकर सब कुछ भूल नहीं जाना चाहिए। धन-संपत्ति तो तुच्छ वस्तु है इसका कभी अभिमान नहीं करना चाहिए। अपने आप को धन का स्वामी समझकर गमन करना बेकार है। मनुष्य को सदा याद रखना चाहिए कि संसार में कोई भी अनाथ नहीं है ईश्वर सबके साथ है। ईश्वर अत्यंत दयालु और गरीबों के दोस्त हैं। वह सदा आपकी सहायता करते हैं। जो मनुष्य स्वयं को गरीब समझकर सदा परेशान रहते हैं और उस ईश्वर पर विश्वास नहीं करते वह बहुत दुर्भाग्यशाली होते हैं। कवि पुनः कहता है कि इस संसार में सच्चा मनुष्य वही है जो दूसरों की सहायता के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दें।
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व्याख्या;
कवि कहता है कि मनुष्य को धन-संपत्ति के घमंड में अंधा होकर सब कुछ भूल नहीं जाना चाहिए। धन-संपत्ति तो तुच्छ वस्तु है इसका कभी अभिमान नहीं करना चाहिए। अपने आप को धन का स्वामी समझकर गमन करना बेकार है। मनुष्य को सदा याद रखना चाहिए कि संसार में कोई भी अनाथ नहीं है ईश्वर सबके साथ है। ईश्वर अत्यंत दयालु और गरीबों के दोस्त हैं। वह सदा आपकी सहायता करते हैं। जो मनुष्य स्वयं को गरीब समझकर सदा परेशान रहते हैं और उस ईश्वर पर विश्वास नहीं करते वह बहुत दुर्भाग्यशाली होते हैं। कवि पुनः कहता है कि इस संसार में सच्चा मनुष्य वही है जो दूसरों की सहायता के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दें।
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कवि कहते हैं कि हमें कभी भूलकर भी अपने थोड़े से धन के अहंकार में अंधे होकर स्वयं को सनाथ अर्थात् सक्षम मानकर गर्व नहीं करना चाहिए क्योंकि यहाँ अनाथ कोई नहीं है। इस संसार का स्वामी ईश्वर है जो सबके साथ है| ईश्वर बहुत दयालु हैं और दीनों और असहायों का सहारा हैं| उनके हाथ बहुत विशाल है अर्थात् वह सबकी सहायता करने में सक्षम है।प्रभु के रहते भी जो व्याकुल रहता है वह बहुत ही भाग्यहीन है|
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