राजस्थान में किसान आंदोलनों का वर्णन कीजिए।
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राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के समय राजनीतिक चेतना का आरंभ राजस्थान के किसानों व जनजातीय समाज ने किया था। राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तरह के किसान आंदोलन हुए, जिनमें बिजोलिया किसान आंदोलन, सीकर किसान आंदोलन, बेंगू किसान आंदोलन, वरड़ किसान आंदोलन व नीमूचणा किसान आंदोलन प्रमुख थे।
बिजोलिया किसान आंदोलन — यह किसान आंदोलन राजस्थान के बाकी सारे किसान आंदोलन का प्रेरणा स्रोत रहा था। राजस्थान के बिजोलिया क्षेत्र के किसानों की हालत पहले से ही काफी खराब थी और उसके बावजूद वहां के शासकों ने उन पर तरह-तरह के अनेक कर लगाने शुरू कर दिए थे। इससे बिजोलिया के किसानों में भारी असंतोष फैलने लगा और उन्होंने शासन के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। उदयपुर की राज्य सरकार ने 1919 में किसानों की शिकायतों की सुनवाई के लिए एक आयोग का गठन किया, लेकिन उसका कोई परिणाम नहीं निकला। आयोग ने किसानों के पक्ष में अनेक सिफारिशें अपनी रिपोर्ट में दी लेकिन मेवाड़ की सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया और यह आंदोलन चलता रहा। यह आंदोलन बहुत लंबे समय तक चलने वाला आंदोलन रहा है यह आंदोलन लगभग आधी शताब्दी तक चला था और यह 1941 में जाकर खत्म हुआ था।
सीकर किसान आंदोलन — सीकर का किसान आंदोलन तब हुआ जब नए राव राजा कल्याण सिंह ने भू राजस्व कर में 20 से 50% तक की वृद्धि कर दी। इससे सीकर के किसानों में भारी असंतोष फैल गया और उन्होंने आंदोलन शुरू कर दिया। 1935 के अंत तक किसानों की ज्यादातर मांगे मान ली गयीं।
बेगू किसान आंदोलन — यह आंदोलन बिजोलिया किसान आंदोलन से प्रेरित होकर ही शुरू हुआ था। राजस्थान की बेगू नामक जगह के किसानों ने 1921 में यह आंदोलन शुरू किया था। क्षेत्र के किसान शासकों द्वारा बेलगाम लगान के अत्याचारों से पीड़ित थे। इस आंदोलन का नेतृत्व विजय सिंह पथिक जैसे किसानों ने किया। बाद में मेवाड़ सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया उसके बाद ही ये आंदोलन धीरे-धीरे खत्म हो गया।
बरड़ किसान आंदोलन — यह आंदोलन राजस्थान के बूंदी राज्य के वरड़ क्षेत्र के किसानों ने बूंदी प्रशासन के विरुद्ध 1922 में शुरू किया था। इस आंदोलन की कमान राजस्थान सेवा संघ के कार्यकर्ता ननकूराम शर्मा के हाथों में थी। 1927 में राजस्थान सेवा संघ के अंतर्विरोध के कारण इस आंदोलन को बंद करना पड़ा।
नीमूचणा किसान आंदोलन — राजस्थान के अलवर क्षेत्र में शूकरों को मारने पर प्रतिबंध था। लेकिन यह शूकर कर किसानों की फसल बर्बाद कर देते थे और किसान इन शूकरों के आंतक से बेहद दुखी थे। ऐसे में अलवर क्षेत्र के किसानों ने वहां के महाराजा के खिलाफ एक आंदोलन शुरू कर दिया और अंततः महाराजा को शूकरों को मारने की इजाजत देनी पड़ी। इसके अतिरिक्त महाराजा ने एक नया भूमि कर कानून भी लागू कर दिया था। इस कानून के लागू होने से पहले ब्राह्मणों और राजपूतों को भूमि कर में छूट थी जो इस कानून के लागू होने के बाद समाप्त हो गई। जिससे राजपूतों नाराज हो गए और उन्होंने इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। जब हजारों किसान नीमूचणा नामक जगह पर आंदोलन करने के लिए इकट्ठे हुए थे तो राजा के सैनिकों ने उन पर गोली बरसा दीं। इस कार्रवाई में लगभग 156 लोग मारे गए और 600 लोग घायल हो गए थे।