साहित्य समाज का दर्पण है इस प्रचलित धारणा के विरोध में ‘यथास्मै रोचते विश्वम' के लेखक ने क्या तर्क दिए हैं उन पर टिप्पणी कीजिए।
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साहित्य समाज का दर्पण है इस प्रचलित धारणा के विरोध में ‘यथास्मै रोचते विश्वम’ लेखक के लेखक ‘रामविलास शर्मा’ ने निम्नलिखित तर्क दिए हैं...
लेखक के अनुसार यदि साहित्य समाज का दर्पण होता तो संसार को बदलने की बात कभी नहीं उठती। यदि कवि को कार्य यथार्थ जीवन को प्रतिबिंबित करना ही होता तो वह प्रजापति अर्थात ब्रह्मा का दर्जा नहीं पा लेता क्या। सच बात तो यह है कि प्रजापति अर्थात इस संसार के रचियता ने जो संसार बनाया है, उससे असंतुष्ट होकर नया समाज बनाना ही कविता का जन्मसिद्ध अधिकार है। कवि अपनी रुचि के अनुसार संसार को बदलता है और आवश्यक नहीं कि कवि की रुचि के समान ही सबकी रुचि हो। इसलिए कवि द्वारा रचित संसार समाज का दर्पण नहीं हो सकता। इसलिए साहित्य समाज का दर्पण नहीं हो सकता।
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