Sociology, asked by jangraansh981, 2 months ago

संस्कृतिकरा के बारे बताये​

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Answered by yadavsv09
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Answer:

संस्कृतीकरण भारत में देखा जाने वाला विशेष तरह का सामाजिक परिवर्तन है। इसका मतलब है वह प्रक्रिया जिसमें जातिव्यवस्था में निचले पायदान पर स्थित जातियाँ ऊँचा उठने का प्रयास करती हैं। ऐसा करने के लिए वे उच्च या प्रभावी जातियों के रीति-रिवाज़ या प्रचलनों को अपनाती हैं। यह समाजशास्त्र की पासिंग् नामक प्रक्रिया के जैसा ही है। इस शब्द के प्रयोग को भारतीय समाजशास्त्री एम. एन. श्रीनिवास ने १९५० के दशक में लोकप्रिय बनाया। हालाँकि इसके इससे पुराने उल्लेख भीमराव अम्बेडकर कृत कास्ट्स् इन् इन्डिया: देअर् मेकैनिज़म, जेनेसिस् एन्ड् डेवलप्मेन्ट् में मिल सकते हैं। "सामाजिक सीढ़ी में ऊपर से नीचे की ओर अनुकरण के चलने" की इस प्रक्रिया के सबसे पुराने उल्लेख, एक अन्य सन्दर्भ में गैब्रियल टार्डे लिखित "द लॉज़् ऑफ़् इमिटेशन्" में मिलते हैं।

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परिभाषा संपादित करें

श्रीनिवास ने संस्कृतीकरण की परिभाषा देते हुए कहा कि "इस प्रक्रिया में निचली या मध्यम हिन्दू जाति या जनजाति या कोई अन्य समूह, अपनी प्रथाओं, रीतियों और जीवनशैली को उच्च या प्रायः द्विज जातियों की दिशा में बदल लेते हैं। प्रायः ऐसे परिवर्तन के साथ ही वे जातिव्यवस्था में उस स्थिति से उच्चतर स्थिति के दावेदार भी बन जाते हैं, जो कि परम्परागत रूप से स्थानीय समुदाय उन्हें प्रदान करता आया हो....।"

संस्कृतीकरण का एक स्पष्ट उदाहरण कथित "निम्न जातियों" के लोगों द्वारा द्विज जातियों के अनुकरण में शुद्ध शाकाहार को अपनाना है, जो कि परम्परागत रूप से अशाकाहारी भोजन के विरोधी नहीं होते।

एम. एन. श्रीनिवास के अनुसार, संस्कृतीकरण केवल नयी प्रथाओं और आदतों का अंगीकार करना ही नहीं है, बल्कि संस्कृत वाङ्मय में विद्यमान नये विचारों और मूल्यों के साथ साक्षात्कार करना भी इसमें आ जाता है। वे कहते हैं कि कर्म, धर्म, पाप, माया, संसार, मोक्ष आदि ऐसे संस्कृत साहित्य में उपस्थित विचार हैं जो कि संस्कृतीकृत लोगों के बोलचाल में आम हो जाते हैं

यह परिघटना नेपाल में भी खास, मगर, नेवार, थारू लोगों में देखी गयी है

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