स्तूप का क्या महत्व था और स्तूप वास्तुकला का विकास कैसे हुआ?
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स्तूप का क्या महत्व
स्तूप एक गुम्बदाकार और अंडाकार भवन होता है , जिससे बुद्ध से सम्बधित सामग्री और बुद्ध के अवशेष रखे जाते है | बोद्ध धर्म में स्तूपों ला विशेष महत्व है| स्तूपों में बोद्ध धर्म के इतिहास की जानकारी मिलती है| कुछ स्तूप जातक कथाओं से अलंकृत है| ज्यादातर स्तूप व बुद्ध के स्मृति चिन्हों पर बनाए जाते है|
स्तूप वास्तुकला का विकास : स्तूप वास्तुकला का सर्वोत्तम विकास पहली और दूसरी ईसा शताब्दी में हुआ| बुद्ध के निर्माण के बाद भारत में भारी संख्या में स्तूप बनाए गए है| सम्राट अशोक ने 8400 बोद्ध धर्म के स्तूपों का निर्माण करवाया| यह परम्परा निरंतर चलती रही| साँची सारनाथ , सरहुत, गंधार आदि स्तूप भारतीय वास्तुकला अदित्विय नमूने है|
परवर्ती शताब्दी में इन स्तूपों में और भी सुविधाएँ जोड़ दी गई |कुछ स्तूप ऐसे भी है जो ऐसे तो पहले के थे बाद में उन में कुछ और चीजे जोड़ दी गई है | एक स्तूप में ढोल, चोटी पर हर्मिक और छत्र तो जैसे के जैसे ही रहे पर उनके आकर में बदलाव किया गया| इस प्रकार वास्तुकार स्तूपों में परिवर्तन करके नई प्रतिमाएं बना सकते है|
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भारतीय कला का परिचय
पाठ-3 मौर्य कालीन कला
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क्या आप यह सोचते हैं कि भारत में प्रतिमाएँ/मूर्तियाँ बनाने की कला मौर्य काल मे शुरू हो गई थी? इस संबंध में आपके क्या विचार हैं, उदाहरण सहित लिखें।