Hindi, asked by rajyotmsrheap, 1 year ago

Sh. Bal Gangadhar Tilak’s contribution to Indian freedom movement
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Answered by Anonymous
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तिलक ने मराठी में मराठा दर्पण व केसरी नाम से दो दैनिक समाचार पत्र शुरू किये जो जनता में बहुत लोकप्रिय हुए। तिलक ने अंग्रेजी शासन की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना की बहुत आलोचना की। इन्होंने माँग की कि ब्रिटिश सरकार तुरन्त भारतीयों को पूर्ण स्वराज दे। केसरी में छपने वाले उनके लेखों की वजह से उन्हें कई बार जेल भेजा गया।

तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन जल्द ही वे कांग्रेस के नरमपंथी रवैये के विरुद्ध बोलने लगे। १९०७ में कांग्रेस गरम दल और नरम दल में विभाजित हो गयी। गरम दल में तिलक के साथ लाला लाजपत राय और बिपिन चन्द्र पाल शामिल थे। इन तीनों को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाने लगा। १९०८ में तिलक ने क्रान्तिकारी प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया जिसकी वजह से उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) स्थित मांडलेकी जेल भेज दिया गया। जेल से छूटकर वे फिर कांग्रेस में शामिल हो गये और १९१६ में एनी बेसेंट और मुहम्मद अली जिन्ना के साथ अखिल भारतीय होम रूल लीग की स्थापना की।

Answered by rishilaugh
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श्री बाल गंगाधर तिलक का भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में योगदान 



बाल ने दैनिक समाचार शुरू कर स्वराज का जयघोष किया,

                    एकता की भावना जागृत हो, ‘गणेश, शिव जयंती उत्सव का आगाज किया I

आज़ादी और स्वराज के लिए लिखे लेख, लोगों को जागृत किया,

                    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए, नर्म पंथी का विरोध किया II

लाल-बाल-पाल ने देश में ख़ूब धूम मचाई थी,

                    हर युवा ने एक जुट होकर आज़ादी की आवाज़ उठाई थीI

ईंट का जबाव पत्थर से दो, अपने अधिकारों को छीन कर लो,

                     हिन्दू राष्ट्रवाद की चिंगारी तुमने ही सुलगाई थी II

क्रांतिकारियों का समर्थन किया, और तुन्हें जेल में भेज दिया I

                     अमर रहेगा “बाल” का नाम स्वतंत्रता के लिए ऐसा काम किया II


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वन्दे मातरम्, इन्कलाब ज़िन्दाबाद, भारत छोड़ों, स्वराज,...शत्रुओं को ललकारतें ऐसे असंख्य नारें हमें अतीत की उस निष्ठुर निर्मम स्थिति का आभास करातीं हैं जब अपने ही देश में अपनी ही धरती पर पराधीनता वश भारतवासियों ने कितने कष्ठ सहें कितनी कुर्बानियाँ हुई।


'अपना देश अपना राज्य 'को साक्षात्कार कराने में कटिबद्ध श्री केशव गंगाधर तिलक स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं में अग्रगण्य माने जाते हैं।
बाल गंगाधर तिलक का जन्म महाराष्ट्र के रत्नगिरी में एक सुशिक्षित परिवार में 23 जुलाई सन् 1856 को हूआ। इन्होंने अधययन उच्च कोटि में पूर्ण कर वकालत की पढ़ाई भी पूरी की। कुछ समय गणित के शिक्षक का काम किया। स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरित इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अंतिम साँस तक सक्रिय भाग लिया। इस दृष्टिकोण को साकार कराने का श्रेय सर्व प्रथम बाल गंगाधर को जाता है।

 
सन् 1890 को बाल गंगाधर 'भारतीय राष्ट्रीय कॉग्रस' में शामिल हुए पर उसके नम्रवाद विचारों से असंतुष्ट उन्होंने उग्रवाद रीति को प्रोत्साहन दिया। इस विचार का समर्थन बंगाल के बिपिन पाल ,पंजाब के लाला, तमिलनाडु के चिदंबरम पिल्लै जैसे वरिष्ठ सेनानियों ने किया। 


बाल गंगाधर अपने आक्रोशक विचारों के कारण 'भारतीय उग्रवाद के पिता' के नाम से परिचित हुए। देश में स्वराज को स्थापित करने के लिए इन्होंने धार्मिक व सामाजिक त्योहारों का अपूर्व माध्यम चुना।अब गणेशोत्सव व शिवाजी जयंती धूमधाम से मनाए गए। लोगों को स्वराज की जागरण दिलाने की प्रयास में बाल गंगाधर हर छोटे बड़े गाँव में स्वयं पधारे और किसानों को स्वराज की दिशा में संगठित करने में सफल हुए। बाल गंगाधर
तिलक 'लोक मान्य' तिलक कहलाए। तिलक निरंतर अपनी प्रकाशित दो साप्ताहिक पत्रिकाओं में ओजपूर्ण लेख लिखते थे। मराठी में 'केसरी' और अंग्रेज़ी में 'मराठा'..इन पत्रिकाओं ने जन मानस को झकझोर दिया। विद्रोही तिलक जी पर कई आरोप लगे जिससे उन्हें अनेक बार जेल यात्रा करनी पड़ी। मशहूर हत्या काण्ड के परिणाम स्वरूप बाल गंगाधर जी निर्वासित हुए। बर्मा के मंडाले कारावास में उन्होंने अठारह महीने बिताए।

 वापस आकर वें फिर कॉग्रस के कार्यक्रमों में सक्रिय रहे। नवयुवकों को सही विद्या देने के विचार से उन्होंने अपने मित्रों के साथ 'ढ़केन शैक्षणिक संस्था' की स्थापना की। महात्मा गाँधी से बहुत पहले हीे देश में जागरण, स्वराज प्राप्ति की चेष्टा करने वालों में तिलक जी का नाम उल्लेखनीय है। गांधी जी ने यद्यपि तिलक को अपना गुरु माना तथापि उनकी उग्रवाद प्रणाली को कतई न अपनाया। जेल से लोटकर बाल गंगाधर तिलक ने 'गीता रहस्य' भाष्य लिखी। अस्वस्थ शरीर और कुछ शिथिल मनःस्थिति के कारण तिलक जी ने नम्रवाद को अपनाया। पर निरंतर देश की उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए, अपना सर्वस्व त्याग कर बाल गंगाधर तिलक जी अल्प आयु में ही 1अगस्त सन् 1920 को अपनी भारत माता की गोद में सदा के लिए सो गये।
हमें गर्व है ऐसे सेनानियों पर जो इस स्वतंत्र भारत के मूल कारण बनें।

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