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प्रश्न-1 मानवीय प्रकृति को डराकर नहीं, बल्कि आत्मीयता के साथ परिवर्तित करना
सरल है ? कैसे
।
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मानवीय प्रकृति को डराकर नहीं, बल्कि आत्मीयता के साथ परिवर्तित करना
सरल है क्योंकि मनुष्य अपने भगवान के कोधित होने का डर होता है जबकि मनुष्यों तथा कानून का भय कम होता है।
इसी कारण हर कार्य को पाप या पुण्य कि दृष्टि से देखा जाता है और लोग कर्मा से अधिक डरते हैं।
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मानवीय प्रकृति को डराकर नहीं, बल्कि आत्मीयता के साथ परिवर्तित करना सरल है, यह निम्न प्रकार से स्पष्ट किया है।
- प्रेम में बहुत शक्ति होती है। कहा जाता है कि प्यार से पत्थर भी पिघल जाता है।
- किसी को डरा कर आप अपना काम नहीं करवा सकते।
- पशु पक्षी, सभी प्राणी प्रेम की बोली समझते है। उनमें इतनी आत्मीयता होती है कि जितनी वफादारी की उम्मीद इंसान से नहीं की जाती , जानवर से की जा सकती है।
- किसी जानवर के सर पर आप हाथ फिराओगे तो वो जीवन भर आपका हो जाएगा। जानवर भी प्यार का भूखा होता है ।
- गाय, भैंस हमें दूध देती है उसके बदले में हम उन्हें क्या देते है, प्रताड़ना, कष्ट व असहनीय पीड़ा। आप मिल्क फैक्टरीज में जाकर देखिए किस प्रकार एक प्राणी के अंगो में मशीन लगाकर दूध निकला जाता है।
- गाय के बूढ़ी हो जाने पर उन्हें कसाई खाने भेजा जाता है।
- इस प्रकार की निर्दयता ठीक नहीं है। हम इंसानों का कर्तव्य है कि हम प्रकृति की इस देन को बचाकर व संभलकर रखे।
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