उन्नीसवीं सदी में नगर-नियोजन को प्रभावित करने वाली चिंताएँ कौन सी थीं?
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19वीं सदी में नगर नियोजन को प्रभावित करने वाली अनेक चिंताएं थीं जो इस प्रकार थीं...
- इन नगरों को समुद्र के पास-पास बसाना नगर नियोजन की एक प्रमुख चिंता थी। औपनिवेशिक सरकार नगरों को समुद्र के पास इसलिए विकसित करना चाहती थी ताकि यूरोपीय लोगों के व्यापारिक उद्देश्यों की पूर्ति की जा सके। भारत में निर्मित माल सफलतापूर्वक यूरोप में जा सके और यूरोप का माल भी भारत में आसानी से लाया जा सके। इसलिए इन नगरों को बंदरगाहों के रूप में विकसित किया गया।
- नगर नियोजन की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण चिंता सुरक्षा से संबंधित थी, जब 1857 का सैनिक विद्रोह हुआ तब से अंग्रेज अधिकारी हर समय किसी न किसी विद्रोह की आशंका से डरे रहते थे। इस कारण वह अपने सुरक्षा की दृष्टि से ऐसे स्थानों पर रहना चाहते थे जहां देशीय तथा भारतीयों का खतरा ना हो। इस कारण वह भारतीयों से दूर पृथक एवं पूर्ण रूप से सुरक्षित बस्तियों में रहना रहना चाहते थे। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए सिविल लाइंस नाम से नए शहरी क्षेत्र विकसित किए गए, जहां पर केवल यूरोपीय गोरी चमड़ी वाले वाले लोगों को रहने की इजाजत थी।
- इन नए बसाए शहरों के नक्शे तैयार करवाना नगर नियोजन की एक महत्वपूर्ण चिंता थी। नगरों की उचित बसाहट के लिए संपूर्ण दृश्य को समझना के लिए नक्शा का होना जरूरी था। इसलिए विकास योजनाओं को तैयार करते करने हेतु व औपनिवेशिक सत्ता को मजबूती से स्थापित करने हेतु तथा रक्षा संबंधी अन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए शहर के संपूर्ण दृश्य के नक्शों की आवश्यकता थी।
- रंगभेद और जाति भेदभाव के आधार पर शहरों का विभाजन करना तथा उसी आधार पर सार्वजनिक सुविधाओं को अलग-अलग करना भी नगर नियोजन की एक चिंता थी। अंग्रेज भारतीयों को स्वयं से हेय दृष्टि से देखते थे। उनके अनुसार भारतीय असभ्य थे और वह अपने किसी भी सार्वजनिक स्थानों जैसे क्लब आदि में भारतीयों को प्रवेश करने की अनुमति नहीं देना चाहते थे। अंग्रेजों को भारतीय आबादी वाले भीड़भाड़ वाले स्थान, आवश्यकता से अधिक हरियाली, गंदे पानी की बदबूदार नालियां आदि पसंद नहीं थे। उनके अनुसार दलदली जमीन और ठहरे हुए पानी से बीमारियां उत्पन्न होती थीं। वे यूरोपीय थे, इसी कारण उष्णकटिबंधीय जलवायु को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मानते थे। शहर की जलवायु को स्वस्थ बनाने के लिए वे लोग शहर में जगह-जगह खुले स्थान छोड़े जाने के पक्षधर थे।
- नगरों की व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए अलग-अलग कमेटियों का गठन करना शहर को साफ सुथरा बनाने के लिए बाजारों घाटों, कब्रिस्तान व चर्म-शोधन इकाइयों को साफ करना आदि नगर नियोजन की प्रमुख अन्य अन्य प्रमुख चिंता थी। और इन चिंताओं के समाधान के लिये जन स्वास्थ्य के हित पर बार-बार जोर दिया गया।
- चेहरों के उचित रखरखाव के लिए पर्याप्त धन को जुटाना भी नगर नियोजन की प्रमुख चिंता थी। जैसे कि कोलकाता में नगर के रखरखाव के लिए 1817 ईसवी में लॉटरी लॉटरी समिति का गठन किया गया। इसका कार्य शहर के रख-रखाव के लिए जरूरी धन का प्रबंध करना था, जो ये कमेटी लॉटरी को बेचकर करती थी, इसलिए लॉटरी कमेटी के नाम से प्रसिद्ध थी। इसके अलावा शहर में यातायात की उत्तम व्यवस्था करना, उत्तम शिक्षा संस्थानों की स्थापना करना जलापूर्ति उत्तम व्यवस्था सुनिश्चित करना भी एक प्रमुख चिंता थी।
- उस समय की औपनिवेशिक सरकार अपनी शक्ति व श्रेष्ठता का प्रदर्शन करना चाहती थी, इसलिए उसने अपनी बस्तियों का निर्माण यूरोपियन शैली में किया, जो उत्तम बनावट की होती थीं।
- छावनियों को भी सुरक्षित स्थानों के रूप में विकसित किया गया। इन छावनियों में यूरोपीय कमान के अंतर्गत भारतीय सैनिक नियुक्त किया जाते थे। ये क्षेत्र शहर से तो जुड़े होते थे लेकिन शहर से अलग होते थे। इन छावनियों में चौड़ी सड़के, बड़े-बड़े बगीचे, बंगले, बैरक, परेड मैदान आदि होते थे और यह छावनियां यूरोपीय लोगों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल के रूप में विकसित की गई थीं।
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