Yug ki nayi murti-rachana ka kya arth hai? (Nama of the poem-itne uche utho)
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युग की नयी मूर्ति-रचना में
इतने मौलिक बनो कि जितना स्वयं सृजन है॥
अर्थ: इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि नए समाज के निर्माण में हमें आगे बढ़कर अपनी कल्पनाओं को आकार देकर उन्हे वास्तविक जीवन में लाने का प्रयत्न करना चाहिए। जिसप्रकार कोई कलाकार अपनी कूँची से अपने चित्रों में रंग भरता है, और जिसप्रकार संगीतकार अपने नए राग में स्वरों को पिरोता है, उसी प्रकार हमें भी अपने समाज को नया रूप देने के लिए सृजनात्मक बनना होगा। और सृजन को हमें अपने अंदर मौलिक रूप से ग्रहण करना होगा।
इतने ऊँचे उठो: द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
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कवि द्वारका प्रसाद जी ने अपने जीवन के अभिव्यक्तियों से जो समझा है । उसके आधार पर ही वह युवा पीढ़ी को संदेश देते हैं कि तुम जाति-धर्म, अमीर-गरीब के भेदभाव से बाहर निकल कर एक ऐसे समाज का गठन करो जिसमें सभी समान भाव से रहे।
जिस प्रकार प्रकृति सभी के लिए समान होती है वैसे ही हमें भी समानता का बीच बोना है।आज समाज में चारों ओर नफरत की बीच है उस आग को ठंडा कर हमें मलय पर्वत के समान ठंडा ,शीतल हवा लाना है।
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