1918 satyagrh kha se suru hua
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खेड़ा के कुनबी-पाटीदार किसानों ने 1918 ई. में अंग्रेज़सरकार से लगान में राहत की माँग की थी, क्योंकि गुजरातकी पूरे वर्ष की फ़सल मारी गई थी। किसानों की दृष्टि में फ़सल चौथाई भी नहीं हुई थी। ऐसी स्थिति को देखते हुए लगान की माफी होनी चाहिए थी, पर सरकारी अधिकारी किसानों की इस बात को सुनने को तैयार नहीं थे। किसानों की जब सारी प्रार्थनाएँ निष्फल हो गईं, तब महात्मा गाँधी ने 22 मार्च, 1918 ई. में 'खेड़ा आन्दोलन' की घोषणा की और उसकी बागडोर सम्भाल ली।
गाँधीजी की अपील
इस समय गाँधीजी ने लोगों से स्वयं सेवक और कार्यकर्ता बनने की अपील की। गाँधीजी की अपील पर सरदार वल्लभभाई पटेल अपनी अच्छी ख़ासी चलती हुई वकालत छोड़ कर सामने आए। यह उनके सार्वजनिक जीवन का श्रीगणेश था। उन्होंने गाँव-गाँव घूम-घूम कर किसानों से प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर कराया कि वे अपने को झूठा कहलाने और स्वाभिमान को नष्ट कर जबर्दस्ती बढ़ाया हुआ कर देने की अपेक्षा अपनी भूमि को जब्त कराने के लिये तैयार हैं।
यह सत्याग्रह गाँधीजी का पहला आन्दोलन था। सरकार को अपनी भूल का अनुभव हुआ, पर उसे वह खुल कर स्वीकार नहीं करना चाहती थी। अत: उसने बिना कोई सार्वजनिक घोषणा किए ही गरीब किसानों से लगान की वसूली बंद कर दी। सरकार ने यह कार्य बहुत देर से और बेमन से किया और यह प्रयत्न किया कि किसानों को यह अनुभव न होने पाए कि सरकार ने किसानों के सत्याग्रह से झुककर किसी प्रकार का कोई समझौता किया है। इससे किसानों को अधिक लाभ तो नहीं हुआ, पर उनकी नैतिक विजय हो चुकी थी।
'खेड़ा सत्याग्रह' के फलस्वरूप गुजरात के जनजीवन में एक नया तेज और उत्साह उत्पन्न हुआ और आत्मविश्वास जागा। यह सत्याग्रह यद्यपि साधारण-सा था, तथापि भारतीय चेतना के इतिहास में इसका महत्व 'चंपारन सत्याग्रह' से कम नहीं है। गाँधीजी के सत्याग्रह के आगे विवश होकर ब्रिटिश अंग्रेज़ सरकार ने यह आदेश दिया कि वसूली समर्थ किसानों से ही की जाय।
गाँधीजी की अपील
इस समय गाँधीजी ने लोगों से स्वयं सेवक और कार्यकर्ता बनने की अपील की। गाँधीजी की अपील पर सरदार वल्लभभाई पटेल अपनी अच्छी ख़ासी चलती हुई वकालत छोड़ कर सामने आए। यह उनके सार्वजनिक जीवन का श्रीगणेश था। उन्होंने गाँव-गाँव घूम-घूम कर किसानों से प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर कराया कि वे अपने को झूठा कहलाने और स्वाभिमान को नष्ट कर जबर्दस्ती बढ़ाया हुआ कर देने की अपेक्षा अपनी भूमि को जब्त कराने के लिये तैयार हैं।
यह सत्याग्रह गाँधीजी का पहला आन्दोलन था। सरकार को अपनी भूल का अनुभव हुआ, पर उसे वह खुल कर स्वीकार नहीं करना चाहती थी। अत: उसने बिना कोई सार्वजनिक घोषणा किए ही गरीब किसानों से लगान की वसूली बंद कर दी। सरकार ने यह कार्य बहुत देर से और बेमन से किया और यह प्रयत्न किया कि किसानों को यह अनुभव न होने पाए कि सरकार ने किसानों के सत्याग्रह से झुककर किसी प्रकार का कोई समझौता किया है। इससे किसानों को अधिक लाभ तो नहीं हुआ, पर उनकी नैतिक विजय हो चुकी थी।
'खेड़ा सत्याग्रह' के फलस्वरूप गुजरात के जनजीवन में एक नया तेज और उत्साह उत्पन्न हुआ और आत्मविश्वास जागा। यह सत्याग्रह यद्यपि साधारण-सा था, तथापि भारतीय चेतना के इतिहास में इसका महत्व 'चंपारन सत्याग्रह' से कम नहीं है। गाँधीजी के सत्याग्रह के आगे विवश होकर ब्रिटिश अंग्रेज़ सरकार ने यह आदेश दिया कि वसूली समर्थ किसानों से ही की जाय।
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