India Languages, asked by SinghisblingG, 1 year ago

5 slok in sanskritwith meaning in hindi

Answers

Answered by pulkitdube
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श्लोक 1 :

अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम् |

अधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतः सुखम् ||

अर्थात् : आलसी को विद्या कहाँ अनपढ़ / मूर्ख को धन कहाँ निर्धन को मित्र कहाँ और अमित्र को सुख कहाँ |

———

श्लोक 2 :

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः |

नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ||

अर्थात् : मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |

——

श्लोक 3 :—

यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत् |

एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति ||

अर्थात् : जैसे एक पहिये से रथ नहीं चल सकता है उसी प्रकार बिना पुरुषार्थ के भाग्य सिद्ध नहीं हो सकता है |

श्लोक 4 :

बलवानप्यशक्तोऽसौ धनवानपि निर्धनः |

श्रुतवानपि मूर्खोऽसौ यो धर्मविमुखो जनः ||

अर्थात् : जो व्यक्ति धर्म ( कर्तव्य ) से विमुख होता है वह ( व्यक्ति ) बलवान् हो कर भी असमर्थ, धनवान् हो कर भी निर्धन तथा ज्ञानी हो कर भी मूर्ख होता है |

श्लोक 5 :

जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं,

मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति |

चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिं,

सत्संगतिः कथय किं न करोति पुंसाम् ||

अर्थात्: अच्छे मित्रों का साथ बुद्धि की जड़ता को हर लेता है,वाणी में सत्य का संचार करता है, मान और उन्नति को बढ़ाता है और पाप से मुक्त करता है | चित्त को प्रसन्न करता है और ( हमारी )कीर्ति को सभी दिशाओं में फैलाता है |(आप ही ) कहें कि सत्संगतिः मनुष्यों का कौन सा भला नहीं करती |


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pulkitdube: thanks for reading the answers
Answered by Riyadevi
2
अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम् |

अधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतः सुखम् ||

अर्थात् : आलसी को विद्या कहाँ अनपढ़ / मूर्ख को धन कहाँ निर्धन को मित्र कहाँ और अमित्र को सुख कहाँ |
रूपयौवनसंपन्ना विशाल कुलसम्भवाः । विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः ॥

— रूपयौवनसंपन्ना विशाल कुलसम्भवाः । विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः ॥

भावार्थ :

रुपसंपन्न, यौवनसंपन्न, और चाहे विशाल कुल में पैदा क्यों न हुए हों, पर जो विद्याहीन हों, तो वे सुगंधरहित केसुडे के फूल की भाँति शोभा नहीं देते ।

विद्याभ्यास स्तपो ज्ञानमिन्द्रियाणां च संयमः । अहिंसा गुरुसेवा च निःश्रेयसकरं परम् ॥

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भावार्थ :

विद्याभ्यास, तप, ज्ञान, इंद्रिय-संयम, अहिंसा और गुरुसेवा – ये परम् कल्याणकारक हैं ।

विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्। पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम्॥

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भावार्थ :

विद्या से विनय (नम्रता) आती है, विनय से पात्रता (सजनता) आती है पात्रता से धन की प्राप्ति होती है, धन से धर्म और धर्म से सुख की प्राप्ति होती है ।

दानानां च समस्तानां चत्वार्येतानि भूतले । श्रेष्ठानि कन्यागोभूमिविद्या दानानि सर्वदा ॥

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भावार्थ :

सब दानों में कन्यादान, गोदान, भूमिदान, और विद्यादान सर्वश्रेष्ठ है ।


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