Hindi, asked by arj87503357, 11 months ago

Bhartiya bhashaon ke sandrbh mein mulbhut Ekta ko prakashit Karen 800 shabdon mein ​

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Answered by aryamishra45
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Bhartiya bhashaon ke sandrbh mein mulbhut Ekta ko prakashit Karen 800 shabdon mein ****************

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निश्चित ही भारत अपनी भाषिक और सामाजिक संरचना के इतिहास और भूगोल के कारण भाषा और समाज के अध्येताओं के लिए अध्ययन का एक समस्यामूलक, किंतु रोचक विषय बना हुआ है। संसार में किसी दूसरे इतने विशाल और प्राचीन (जिसकी सांस्कृतिक परम्परा आद्यांत अक्षुण्ण हो) और वैविध्यपूर्ण राष्ट्र के न होने के कारण, वह अनेक बार अनेक भ्रांत और भ्रामक धारणाओं का शिकार होता रहा है। इसी का परिणाम है कि भारत में बाली जाने वाली बोलियों, उपभाषाओं और भाषाओं तथा उनके बोलने वाले समुदायों की विविधता तथा संख्या को देखते हुए जो उसे एक ओर भाषा सामाजिक विकट विग्रह (सोशियो-लिग्विंस्टिक ज्वाइंट) की संज्ञा दी है[1] वहीं उसी भाषिक और सामाजिक इकाईयों के मूल में प्रवर्तमान एकात्मकता को देखकर भाषा वैज्ञानिकों ने उसे एक भाषिक क्षेत्र (ए लिग्विंस्टिक एरिया) भी कहा है।[2] वस्तुतः समूचे दक्षिण् पूर्व एशिया में भारतीय उपमहाद्वीप एक ऐसा भाषिक क्षेत्र है जो अनेकता में एकता का अत्यंत सटीक निदर्शन प्रस्तुत करता है।

यद्यपि भारत में प्राचीनतम भाषिक अभिलेख हमें प्राचीन भारतीय आर्यभाषा ‘छंदस’ या वैदिक संस्कृत में वैदिक वाङ्मय के रूप में उपलब्ध हैं, परंतु विद्वानों की धारणा है कि भारत में आर्यों के आगमन से पूर्व आग्नेय, द्रविड़ और भाट-चीनी परिवारों के लोग यहा बसे हुए थे।[3] परिणामस्वरूप आर्य भाषाओं से पूर्व यहां इन्हीं परिवारों की भाषाएं बोली जाती थीं। कुछ विद्वानों के अनुसार भारत में सर्वाधिक प्राचीन जाति नीग्रो या हब्शी है, परंतु अब वह जाति भारत में पूर्णतः विलुप्त हो चुकी है। हां आपवाद रूप में अब भी अंडमान द्वीप समूह में इस जाति के कुछ अवशेष अवश्य मिल जाते हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार अंडमानी भाषा का संबंध इसी जाति या परिवार के साथ है।[4]

नीग्रो जाति के बाद जिस जाति ने भारत में प्रवेश किया, वह है मूल आग्नेय जाति, जिसे प्राचीन काल में निषाद तथा आजकल कोल और मुंडा जाति कहा जाता है।[5] यद्यपि ये लोग पश्चिमी दिशा से ही भारत आए थे, परंतु संप्रति ये लोग मुख्य रूप से बिहार के छोटा नागपुर क्षेत्र उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, मध्यप्रदेश तथा खासी पहाड़ियों के कुछ क्षेत्रों में ही पाये जाते हैं।[6] 1967 की जनगणना के अनुसार इस भाषा परिवार की 65 बोलियां समूचे देश की जनसंख्या के लगभग 1.5 प्रतिशत लोगों द्वारा बोली जाती है।[7] संथाली, मुंडारी, हो, भूमिज, कोरकू, खारिया, सौरा, ख़ासी तथा नीकोबारी इस भाषा परिवार की प्रमुख भाषाएं हैं, तथा इनमें से नीकोबारी, ख़ासी तथााा संथाली भाषाओं को पढ़ा लिखा भी जाता है

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