निम्नलिखित पद्यांश की सन्दर्भ सहित हिन्दी में व्याख्या कीजिए और उसका काव्यगत-सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए—
सच्चा प्रेम वही है जिसकी-
तृप्ति आत्म-बलि पर हो निर्भर ।
त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है,
करो प्रेम पर प्राण निछावर ।।
देश-प्रेम वह पुण्य-क्षेत्र है,
अमल असीम, त्याग से विलसित ।
आत्मा के विकास से जिसमें,
मनुष्यता होती है विकसित ।।
Answers
निम्नलिखित पद्यांश की सन्दर्भ सहित हिन्दी में व्याख्या और उसका काव्यगत-सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए—
प्रसंग: कवि ने त्याग और बलिदान को ही सच्चे देश-प्रेम के लिए आवश्यक माना है|
व्याख्या: कवि कहता है सच्चा प्रेम वही है , जिस में आत्म-त्याग की भावना होती है, अथार्त आत्म-त्याग पर ही सच्चा प्रेम निर्भर होता है| देश की रक्षा करने के लिए यदि हमें अपने प्राणों की भी जान देने पड़े रो हमें पीछे नहीं हटना चाहिए|
बिना त्याग के प्रेम प्राणहीन या मृत है| त्याग से ही प्रेम में प्राणों का संचार होता है| देश प्रेम वह पवित्र भावना है , जो निर्मल और सीमारहित त्याग से सुशोभित होती है| देश प्रेम से आत्मा का विकास और आत्मा से मनुष्यता का विकास करना चाहिए|
काव्यगत-सौन्दर्य
प्रस्तुत पद में देश प्रेम की उत्पत्ति के मूल भावों पर प्रकाश डाला गया है|
भाषा -सरल खड़ी बोली |
शैली-उद्दोध्न
रस-वीर
गुण-ओज
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निम्नलिखित संस्कृत-पद्यांश/श्लोक का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए—
रे रे चातक ! सावधानमनसा मित्र ! क्षणं श्रूयताम् ।
अम्भोदा बहवो हि सन्ति गगने सर्वेSपि नैतादृशाः ।।
केचिद् वृष्टिभिरार्द्रयन्ति वसुधां गर्जन्ति केचिद् वृथा ।
यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वचः ।।
पद्यांश की सन्दर्भ सहित व्याख्या तथा काव्यगत-सौन्दर्य निम्नलिखित है —
Explanation:
सन्दर्भ: प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के काव्य-खण्ड में संकलित ' स्वदेश-प्रेम ' शीर्षक तथा काव्य-संग्रह ' स्वप्न ' से ली गयी है। इसके रचयिता श्री रामनरेश त्रिपाठी हैं।
प्रसंग: कवि ने सच्चे देश-प्रेम के लिए त्याग और बलिदान को ही आवश्यक माना है।
व्याख्या: कवि कहता है कि सच्चा प्रेम वही है, जिसमें आत्म-त्याग की भावना होती है। अर्थात आत्म- त्याग पर ही सच्चा प्रेम निर्भर होता है। बिना त्याग के प्रेम प्राणहीन या मृत समान है। अतः सच्चा प्रेम प्राप्त करने के लिए यदि हमें अपने प्राणों को भी न्योछावर करना पड़े तो भी पीछे नहीं हटना चाहिए। देश प्रेम एक ऐसी भावना है जो निर्मल और सीमारहित त्याग से सुशोभित होती है। यदि किसी मनुष्य को अपनी आत्मा का विकास करना हो तो उसे अपने अंदर देश प्रेम की भावना विकसित करना होगा। आत्मा के विकास से मनुष्य का विकास होता है। अतः देश प्रेम से आत्मा का विकास और आत्मा के विकास से मनुष्यता का विकास करना चाहिए।
काव्यगत सौन्दर्य: देश प्रेम की उत्पत्ति के मूल भावों पर प्रस्तुत पद्य में प्रकाश डाला गया है।
- भाषा - सरल कड़ी बोली।
- शैली - उद्बोधन।
- रस - वीर
- छन्द - 16-16 मात्राओं वाला मात्रिक छन्द प्रत्येक चरण में है।
- गुण - ओज।
- अलंकार - करो प्रेम पर प्राण निछावर में अनुप्रास तथा रूपक।
- भावसाम्य - ' दिनकर ' जी ने भी कहा है-
स्वातन्त्र्य गर्व उनका जो नर फाकों में प्राण गँवाते हैं।
पर नहीं बेचमन का प्रकाश रोटी का मोल चुकाते हैं।