Hindi, asked by kingfahad4395, 1 year ago

rail yatra is anubhav in hindi

Answers

Answered by AryanDeo
4
बच्चे आम तौर पर बाहर जाना पसंद करते हैं जैसे, वे अक्सर यात्राएं बनाने के बहुत शौक रखते हैं वे सभी प्रकार की यात्राएं प्यार करते हैं मैं अक्सर अपने माता-पिता से अलग-अलग स्थानों पर बस से यात्रा करता है। हालांकि, पिछले रविवार को मुझे रेल द्वारा एक यादगार यात्रा मिली थी।
हम स्टेशन पर लगभग 10.00 बजे पहुंचे। ट्रेन 10.15 बजे शुरू हुई थी। मेरे पिता ने मां और मेरे लिए और खुद के लिए भी टिकट खरीदे थे। तत्काल, हम मंच नंबर 1 पर चले गए जहां ट्रेन शीघ्र ही आने वाली थी। रेलगाड़ी आने पर हम एक मिनट या दो से अधिक समय तक मंच पर नहीं थे। हम एक ही बार में सवार थे हमारे पास प्रथम श्रेणी के टिकट थे इसलिए, हमें ट्रेन पर चढ़ने में कोई कठिनाई नहीं हुई।
मुझे खिड़की के पास एक सीट मिली जल्द ही, ट्रेन शुरू हुई। मुझे रोमांचित महसूस हुआ मैंने देखा कि मंच पीछे की ओर बढ़ रहा है सबसे पहले यह ट्रेन धीमी थी लेकिन जल्द ही उन्होंने गति बढ़ाया कुछ ही मिनटों के भीतर, यह हवा की गति प्राप्त की।
सभी घरों, ध्रुव, खेतों और पेड़ पीछे पीछे चलने लगते थे। मैंने खेतों में काम करने वाले किसानों को देखा पशु भी वहाँ चराई थे कुछ महिलाएं खेतों से मातम उठा रही थीं
रेल यात्रा का यह अनुभव मै कभी नही भूलूंगा।
hope this will help you.
Answered by dhruvbadaya1
2

हमारे देश में रेलवे ही एक ऐसा विभाग है जो यात्रियों को टिकट देकर सीट की गारंटी नहीं देता । रेल का टिकट खरीद कर सीट मिलने की बात तो बाद में आती है पहले तो गाड़ी में घुस पाने की भी समस्या सामने आती है और यदि कहीं आप बाल-बच्चों अथवा सामान के साथ यात्रा कर रहे हों तो यह समस्या और भी विकट हो उठती है । कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि टिकट पास होते हुए भी आप गाड़ी में सवार नहीं हो पाते और ‘दिल की तमन्ना दिल में रह गयी’ गाते हुए या रोते हुए घर लौट आते हैं । रेलगाड़ी में सवार होने से पूर्व गाड़ी की प्रतीक्षा करने का समय बड़ा कष्टदायक होता है। मैं भी एक बार रेलगाड़ी में मुंबई जाने के लिए स्टेशन पर गाड़ी की प्रतीक्षा कर रहा था। गाड़ी कोई दो घंटे लेट थी । यात्रियों की बेचैनी देखते ही बनती थी । गाड़ी आई तो गाड़ी में सवार होने के लिए जोर आज़माई शुरू हो गयी । किस्मत अच्छी थी कि मैं गाड़ी में सवार होने में सफल हो सका । गाड़ी चले अभी घण्टा भर ही हुआ था कि कुछ यात्रियों के मुख से मैंने सुना कि यह डिब्बा जिसमें मैं बैठा था अमुक स्थान पर कट जाएगा । यह सुनकर मैं तो दुविधा में पड़ गया । गाड़ी

रात के एक बजे उस स्टेशन पर पहुँची जहाँ हमारा वह ब्बा मुख्य गाड़ी से कटना था और हमें दूसरे डिब्बे में सवार होना था । उस समय अचानक तेज़ वर्षा होने लगी । स्टेशन पर कोई भी कुली नज़र नहीं आ रहा था। सभी यात्री अपना-अपना सामान उठाये वर्षा में भीगते हुए दूसरे डिब्बे की ओर भागने लगे। मैं भी श्वरचन्द्र विद्यासागर का स्मरण करते हुए अपना सामान स्वयं ही उठाने का निर्णय करते ए अपना सामान गाड़ी से उतारने लगा । मैं अपना अटैची लेकर उतरने लगा कि एक दम वह डिब्बा चलने लगा । मैं गिरते-गिरते बचा और अटैची मेरे हाथ से छूट कर लेटफार्म पर गिर पड़ा और पता नहीं कैसे झटके के साथ खुल गया । मेरे कपड़े वर्षा में भीग गये। मैंने जल्दी-जल्दी अपना सामान समेटा और दूसरे डिब्बे की ओर बढ़ गया। गर्मी का मौसम और उस डिब्बे के पंखे बन्द । खैर गाड़ी चली तो थोड़ी हवा लगी और छ राहत मिली । बड़ी मुश्किल से मैं मुम्बई पहुँचा ।

Similar questions