स्वयं की सत्रहवीं शताब्दी के एक अंग्रेज़ यात्री के रूप में कल्पना करें। अपनी आँखों से देखे गए हस्तशिल्पों का वर्णन करें। आप क्या और क्यों खरीद कर घर ले जाना पसंद करेंगे?
Answers
स्वयं की सत्रहवीं शताब्दी के एक अंग्रेज़ यात्री के रूप में कल्पना करें। अपनी आँखों से देखे गए हस्तशिल्पों का वर्णन करें। आप क्या और क्यों खरीद कर घर ले जाना पसंद करेंगे?
Explanation:
उत्तर :- सत्रहवीं शताब्दी में अंग्रेज भारत के बेहतरीन वस्तुओं से आकर्षित हो कर यहाँ पर कारोबार करने के लिए आए। उस समय में उन्हें भारत में बने चटख रंगों तथा फूलों की डिजाइन के ऊपर बनी पोशाकें भांति थी। तथा भारत में बनाने वाले मसलों से भी उन्हें काफी रुचि था।
उस समय में पूरे यूरोप में भारतीय रेशमी वस्त्र और ऊनी कपड़ों की मांग थी। रत्नों जवाहरातों की एक विशाल ही संग्रह किसी भी अंग्रेज़ को मोहित करने के लिए पर्याप्त था। हीरे, मोती और चन्दन की सुगंध से पूरा यूरोप भारत के प्रति एक तरह से आकृष्ट ही हो पड़ा था।
भारत के हस्तशिल्प
विवरण :
जैसा कि सब जानते हैं कि भारत एक ऐसा देश है जहां पर हस्तशिल्प का कार्य बहुत होता है और वहाँ के हस्तशिल्प दुनिया भर में बहुत मशहूर हैं । बहुत समय से मेरे मन में भी विचार था कि मैं भी भारत के हस्तशिल्प के बारे मैं जानकारी प्राप्त करूँ क्योंकि एक अंग्रेज़ मुल्क में रहने के कारण, हस्तशिल्प के बारे में मेरी जानकारी शून्य मात्र ही थी क्योंकि हमारे देश में हस्तशिल्प का कारोबार न के बराबर ही था। इसीलिए मैंने अपने परिवार के साथ भारत यात्रा का सोचा और भारत के लिए रवाना हो गया । वहाँ पर कई प्रसिद्ध जगह घूमने के बाद मैं दिल्ली के प्रगति मैदान पहुंचा जहां हस्तशिल्प मेला लगा हुआ था। वहाँ पर मैंने भारतीय हस्तशिल्प की एक ऐसी तस्वीर देखी कि मैं इस कार्यशैली का मुरीद हो गया । वहाँ पर मैंने बांस के हस्तशिल्प देखे। बांस का निर्माता होने के कारण भारत में बांस से बने हस्तशिल्प सबसे इको-फ्रेंडली शिल्प होते हैं। इन हस्तशिल्पों में टोकरी, गुडि़या, खिलौने, चलनी, चटाई, दीवार पर लटकाने का सामान, छाते के हैंडल, क्राॅसबो, खोराही, कुला, डुकुला, काठी, गहने के बक्से आदि समान थे और अत्यंत सुंदर तरीके से बनाए गए थे। वहाँ के निर्माता ने बताया कि बांस का ज्यादातर हस्तशिल्प पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा में बनता है। इसके अलावा बेंत का सामान भारत में हस्तशिल्प का प्रसिद्ध रुप है जिसमें उपयोगी वस्तुएं जैसे ट्रे, टोकरियां, स्टाइलिश फर्नीचर आदि शामिल थे । बेल मेटल का समान तो बहुत ही सुंदर और अलग सा था। इस कड़ी मिश्र धातु का उपयोग सिंदूर के बक्से, कटोरे, मोमबत्ती स्टेंड, पेंडेंट और कई शिल्प बनाने में किया जाता है। निर्माता के अनुसार बेल मेटल हस्तशिल्प ज्यादातर मध्यप्रदेश, बिहार, असम और मणिपुर में प्रचलित है। मध्य प्रदेश में हस्तशिल्प के इस रुप को आदिवासी शिल्प के रुप में जाना जाता है। मैंने हड्डी और सींग हस्तशिल्प के बने पैन स्टैंड, गहने, सिगरेट के डिब्बे, टेबल लैंप, मिर्च और नमक के सेट, शतरंज सेट, नैपकिन रिंग, लाफिंग बुद्धा आदि वस्तुएं भी देखी जिसको देख कर ही कार्यकुशलता का पता चलता है। अंत में मैंने मिट्टी के हस्तशिल्प देखे जो कुम्हार द्वारा बनाए जाते हैं जैसे कि लाल बर्तन, ग्रे बर्तन और काले बर्तन । यह मिट्टी के बर्तन, सजावटी सामान, गहने आदि पूरे देश और विदेश में काफी इस्तेमाल किए जाते हैं।
जूट हस्तशिल्प का भी एक अधभूत नज़ारा था। जूट शिल्प की विस्तृत रेंज में बैग, ऑफिस स्टेशनरी, चूड़ियाँ और अन्य गहने, फुटवेयर, वाॅल हैंगिंग और कई सामान शामिल हैं। चांदी की मीनाकारी किए हुए पानदान, चाय की ट्रे, ट्रींकेट बाॅक्स, झुमके, नेकलेस, ब्रेसलेट और अन्य तरह के गहने बहुत ही सुंदर थे।
इसके अलावा भी वहाँ पर अनेक तरह के हस्तशिल्प थे जो अनेक धातुओं से बने हुए थे। मैंने हर तरह के हस्तशिल्प का समान वहाँ से खरीदा क्योंकि ऐसे बना हुआ समान मैंने कभी नहीं देखा था। इसको खरीदने का एक कारण यह भी था कि यह सब वस्तुएं पर्यावरण के अनुकूल हैं और इन वस्तुओं को पर्यावरण को ध्यान में रख कर ही बनाया गया है। इस बात में कोई संदेह नहीं कि भारत के हस्तशिल्प सच में बहुत ही सुंदर और अनमोल हैं।