हमारे मन में उस समय क्या भावनाएँ उठ रही थीं, यह अगर बता पाता तो यह खरोंच, यह पीर ही क्यों रह गयी होती ? सिर्फ एक धुँधला-सा संवेदन इसका अवश्य था कि जैसे बर्फ के सिल के सामने खङे होने पर मुँह पर ठंडी-ठंडी भाप लगती है, वैसे ही हिमालय की शीतलता माथे को छू रही है और सारे संघर्ष, सारे अन्तर्द्वन्द्व, सारे ताप जैसे नष्ट हो रहे हैं । क्यों पुराने साधकों ने दैहिक, दैविक और भौतिक कष्टों को ताप कहा था और उसे नष्ट करने के लिए वे क्यों हिमालय जाते थे, यह पहली बार मेरी समझ में आ रहा था ।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ अथवा पाठ और लेखक का नाम लिखिए ।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
(स) लेखक ने पुराने साधकों का उल्लेख क्यों और किस लिए किया है ?
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गुरुजनों का आदर करना चाहिए ।
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