तोता दिन भर भद्र रीति के अनुसार अधमरा होता गया । अभिभावकों ने समझा कि प्रगति काफी आशाजनक हो रही है । फिर भी पक्षी-स्वभाव के एक स्वाभाविक दोष से तोते का पिंड अब भी छूट नहीं पाया था । सुबह होते ही वह उजाले की ओर टुकुर-टुकुर निहारने लगता था और बङी ही अन्याय भरी रीति से अपने डैने फङफङने लगता था । इतना ही नहीं किसी-किसी दिन तो ऐसा भी देखा गया कि वह अपनी रोगी चोंचों से पिंजरे की सलाखें काटने में जुटा हुआ है ।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ अथवा पाठ और लेखक का नाम लिखिए ।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
(स) सुबह होते ही तोता क्या करने लगता था ?
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सुबह होते ही वह उजाले की ओर टुकुर-टुकुर निहारने लगता था और बङी ही अन्याय भरी रीति से अपने डैने फङफङने लगता था ।
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तोता दिन भर भद्र रीति के अनुसार अधमरा होता गया । अभिभावकों ने समझा कि प्रगति काफी आशाजनक हो रही है । फिर भी पक्षी-स्वभाव के एक स्वाभाविक दोष से तोते का पिंड अब भी छूट नहीं पाया था । सुबह होते ही वह उजाले की ओर टुकुर-टुकुर निहारने लगता था और बङी ही अन्याय भरी रीति से अपने डैने फङफङने लगता था । इतना ही नहीं किसी-किसी दिन तो ऐसा भी देखा गया कि वह अपनी रोगी चोंचों से पिंजरे की सलाखें काटने में जुटा हुआ है ।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ अथवा पाठ और लेखक का नाम लिखिए ।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
(स) सुबह होते ही तोता क्या करने लगता था ?
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